जब लाल बहादुर शास्त्री ने पूरे देश से हफ्ते में एक दिन व्रत रखने की अपील की थी

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का एक शहर मुगलसराय…जहां 2 अक्टूबर 1904 को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था।…गरीब परिवार में जन्मे शास्त्री जी की जिंदगी संघर्षों और उतार-चढ़ाव से भरी हुई थी। लेकिन गरीबी और जिंदगी के संघषों ने उन्हें कुछ ऐसा सींचा था कि जब उन्होंने सबसे बड़े लोकतंत्र की बागडोर दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में अपने हाथों में ली तो सामने एक ऐसे नेता का व्यक्तित्व सामने आया…जिसके नेतृत्व में देश खुद को महफूज महसूस करने लगा। सादगी भरा जीवन, गजब का आत्मविश्वास और देश की उन्नति के लिए कुछ भी कर गुजरने के विचार और जज्बे ने उन्हें देश का सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बनाया।

कई बार देश को संकटों से उबारा

लाल बहादुर शास्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से बाहर निकाला था। वो साल था 1965 जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। उस वक्त देश की बागडोर शास्त्री जी के हाथो में थी। युद्ध के दौरान पूरे देश में आनाज की कमी हो गई। पूरा देश अन्न की कमी से जूझ रहा था। जब देश भूखमरी से दो चार हो रहा था लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी तनख्वाह लेनी बंद कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने घर में काम करने वाले नौकरों को भी मना कर दिया और सारा काम खुद से करने लगे।

एक तरफ जहां देश खाद्यान की कमी से गुजर रहा था तो वहीं अमेरिका ने भी भारत को अनाज के निर्यात पर रोक लगाने की धमकी दे दी थी…तब शास्त्री जी ने देश के लोगों से अपील किया कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त का उपवास रखे। और उन्होंने देशवासियों के सामने ये ऐलान किया कि उनके घर एक हफ्ते तक शाम को चुल्हा नहीं जलेगा। उनके इस ऐलान का देश के लोगों पर कुछ ऐसा असर हुआ कि उसके बाद ज्यादातर होटलों और ढाबों में भोजन नहीं पकाया गया। जी हां लाल बहादुर शास्त्री ने ऐसा कुशल नेतृत्व किया था देश का…

Courtesy Stress Free India

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