संसद में पहले भी मिल चुकी हैं नोटों की गड्डी, जानिए कब-कब मचा कैश कांड पर शोर

संसद में पहले भी 2 बार कैश कांड पर हंगामा मच चुका है. पहला वाकया साल 1993 का है. उस वक्त शिबू सोरेन की पार्टी पर पैसे लेकर वोट देने का आरोप लगा. दूसरा वाकया साल 2008 का है. मनमोहन सरकार के अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के वक्त लोकसभा स्पीकर के टेबल पर नोट लहराए गए थे.

शीतकालीन सत्र के 10वें दिन राज्यसभा में सीट नंबर 222 के पास नोटों की एक गड्डी मिली है. यह सीट कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की है. सीट के पास से नोटों की गड्डी मिलने के बाद देश की सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. पूरे मामले से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. सिंघवी का कहना है कि मैं संसद में 500 रुपए से ज्यादा लेकर जाता ही नहीं हूं.

राज्यसभा के सभापति ने पूरे मामले की जांच कराने की बात कही है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब संसद में नोटों की शोर सुनाई दी है. पहले भी दो मौकों पर नोटों की वजह से भारत की संसद सुर्खियों में रह चुका है.

पहला मौकाः सरकार बचाने के लिए 40-40 लाख मिले

पहला वाकया साल 1993 की है. नरसिम्हा राव की सरकार केंद्र की सत्ता में थी, लेकिन सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं था. बाबरी विध्वंस के बाद नरिसम्हा राव पार्टी नेताओं के निशाने पर भी थे. राव और अर्जुन सिंह के बीच मतभेदों की खबर रोज अखबारों में छपती थी.

इसी बीच बीजेपी ने राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया. पार्टी का कहना था कि सरकार अब अल्पमत में आ गई है. इस अविश्वास प्रस्ताव पर 3 दिन तक खूब बहस हुई और जब वोटिंग का वक्त आया, तो सब चौंक गए.

नरिसम्हा राव के पास उस वक्त 244 सांसदों का ही साथ था, लेकिन वोट उन्हें 265 मिले. अविश्वास प्रस्ताव के वक्त विपक्ष को सिर्फ 251 वोट मिल पाए और राव की सरकार बच गई. <

1996 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सूरज मंडल ने एक खुलासा किया. मंडल के मुताबिक 1993 में पैसे बंटने की वजह से राव की सरकार बच पाई. मंडल का कहना था कि सरकार बचाने के लिए एक-एक सांसदों को 40 लाख रुपए दिए गए थे.

कहा जाता है कि कैश कांड की यह पूरी स्क्रिप्ट बूटा सिंह ने लिखी थी, जो राव की सरकार में कद्दावर मंत्री थे. मंडल जेएमएम की तरफ से इस डील को देख रहे थे. 1993 में जेएमएम के साथ-साथ चौधरी अजित सिंह की पार्टी भी टूटी थी.

इस मामले में सीबीआई की तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि पैसा कैश में मिला था और जेएमएम के सांसदों ने इस पैसे को स्थानीय स्तर पर ब्याज पर लगा दिया. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन केस में सभी आरोपी बरी हो गए.

दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2000 में पूरे मामले को लेकर सीबीआई को जमकर फटकार लगाई.

दूसरा मौका: बीजेपी के 3 सांसदों ने लहरा दिए नोट

2008 में अमेरिका के साथ मनमोहन सिंह की सरकार ने न्यूक्लियर डील किया. इस समझौते के खिलाफ सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके तुरंत बाद बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया.

संसद में इस अविश्वास प्रस्ताव पर खूब बहस हुई, लेकिन जब बारी वोटिंग की आई तो बीजेपी के 3 सांसदों ने नोट लहरा दिए. यह नोट तत्कालीन लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के टेबल पर लहराए गए. नोट लहराने वाले बीजेपी के सांसद थे- अशोक अर्गल, फगन कुलस्ते और महावीर भागौरा.

तीनों सांसदों का आरोप था कि मुझे पैसे सपा के अमर सिंह ने दिए हैं. यह पैसा सरकार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के लिए दिया गया है. इस आरोप को तब और बल मिला, जब समाजवादी पार्टी ने मनमोहन सरकार का समर्थन कर दिया.

इस अविश्वास प्रस्ताव में सरकार के पक्ष में 268 वोट पड़े. विपक्ष को 263 वोट मिले. मतदान के दौरान बीजेपी के 8 सांसदों ने पार्टी का ही खेल बिगाड़ दिया.

बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और मनमोहन सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी कर दी. अमर सिंह को इस मामले में जेल भी जाना पड़ा. हालांकि, बाद में उन पर इस मामले में कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई.

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