भारत में मेडिकल (Medical) की पढ़ाई के लिए सीटों की मारामारी को खत्म करने के लिए देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नई पहल की है। देश के बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल्स के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में मीटिंग की है। इस मीटिंग में देश 62 अस्पतालों ने हिस्सा लिया था। देश से कई छात्र सरकारी मेडिकल कालेज में सीटें ना मिलने और प्राइवेट मेडिकल कालेज की ज्यादा फीस या वहां पढ़ाई का अच्छा इंतजाम ना होने की वजह से हर साल बाहर जाने को मजबूर हो जाते हैं। लिहाजा देश में ही किफायती रेट्स पर मेडिकल की पढ़ाई हो सके, इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों से रिक्वेस्ट की जा रही है।
इस मीटिंग में जसलोक, ब्रिज कैंडी, कोकिला बेन, सत्य साई हॉस्पिटल्स,अपोलो, मेदांता और अमृता अस्पताल जैसे अस्पताल शामिल हुए। करीब 10 से 12 अस्पतालों ने इस पर काम करना भी शुरू कर दिया है।
आखिर वो क्या वजह है कि सरकार ने ये कदम उठाया है?
विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई आसान और किफायती है
NEET का एंट्रेंस मुश्किल
नीट के लिए 8 लाख स्टूडेंट करते हैं एप्लाई
कुल मेडिकल सीटें 1 लाख से भी कम
सरकारी मेडिकल सीटें 50 हज़ार से कुछ ज्यादा
हर साल भारत के कई स्टूडेंट्स चीन रुस और यूक्रेन MBBS की पढ़ाई के लिए चले जाते हैं क्योंकि भारत के प्राइवेट मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की फीस और एडमिशन की डोनेशन मिलाकर खर्च 50 लाख से 1 करोड़ तक भी आ सकता है। जबकि यूक्रेन में रहना और पढ़ाई मिलाकर ये काम 35 लाख में हो सकता है। हालांकि भारत में प्राइवेट कालेज में सरकारी कोटे की सीटें होती हैं लेकिन उनमें एडमिशन इतना आसान नहीं है और मैनेजमेंट कोटे की सीटों की फीस बहुत ज्यादा है। केंद्र सरकार के इस कदम से भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स को आने वाले सालों में राहत हो सकती है।