गोटी सेट कर नीतीश चले दिल्ली, बीजेपी के मुरेठा धारी को आया कॉल; खरमास बाद सियासी खिचड़ी में आएगा उबाल?

Bihar Politics: बिहार की सियासत में बड़े बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। खरमास के दौरान कोई शुभ काम संभव नहीं। इसलिए 15 जनवरी तक इंतजार करना उचित होगा। बदलाव की पटकथा लिखी जा चुकी है। सिर्फ एक्शन बाकी है। पर्दे पर राजनीतिक फिल्म कैसी होगी, यह 2024 के लोकसभा चुनाव में सामने आएगा।

बिहार की सियासत में कोई जायकेदार खिचड़ी पक रही है। इसमें किस तरह का तड़का लगेगा, इसे जानने के लिए तो थोड़ा इंतजार करना ही पड़ेगा। इंडी अलायंस की चौथी बैठक में नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरें, फिर जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाए जाने की घोषणा, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को हटाने जाने की अटकलें और इसी बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का दिल्ली बुलावा, ये सारी गतिविधियां सिर्फ संयोग नहीं हो सकती। बिहार की सियासत में कुछ तो चल रहा है। नीतीश कुमार 28 दिसंबर को दिल्ली जा रहे हैं।

सम्राट चौधरी को बीजेपी ने अचानक दिल्ली बुलाया

जेडीयू की बढ़ी हलचल के बीच बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने सम्राट चौधरी को दिल्ली तलब किया है। संभव है कि बिहार में बढ़ी राजनीतिक हलचल के बारे में पार्टी उनसे फीडबैक लेना चाहती हो। कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि जेडीयू और बीजेपी के बीच सब कुछ सेट हो गया है। तैयार पटकथा पर सिर्फ प्ले करना ही बाकी रह गया है। इंडी अलायंस में अपनी फजीहत झेल चुके नीतीश भले यह कह रहे हों कि सब कुछ ठीक है, कहीं कोई गड़बड़ नहीं है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जब कहीं धुआं दिखता है तो निश्चित ही वहां आग हो सकती है। ललल सिंह से नीतीश की नाराजगी की वजह भी अब सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बन चुकी है।

ललन सिंह से नीतीश की नाराजगी की वजह क्या है

अब सवाल उठता है कि नीतीश कुमार अपने बेहद करीबी ललन सिंह से नाराज क्यों हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि ललन सिंह ने भाजपा का भय दिखा कर नीतीश को आरजेडी के करीब पहुंचाया था। नीतीश को सीएम की कुर्सी चाहिए थी। ललन सिंह ने उनकी कुर्सी की सलामती सुनिश्चित कर दी। आरजेडी और जेडीयू के बीच संबंधों की कड़ी बने ललन सिंह ने पता नहीं क्या सोच कर ऐसा किया, यह तो वे ही जानें, लेकिन नीतीश कुमार को एहसास होने लगा था कि ललन सिंह की लालू यादव के परिवार से नजदीकी कुछ ज्यादा ही हो गई है। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार 19 दिसंबर को इंडी अलायंस की बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग में शामिल हुए बगैर उसी दिन पटना लौट आए, जबकि ललन सिंह दिल्ली में ही रुक गए। ललन सिंह अगले दिन लौटे, जब लालू- तेजस्वी भी पटना पहुंचे। नीतीश को दाल में कुछ काला नजर आया। अव्वल तो नीतीश इसलिए भी ललन से खफा थे कि उन्होंने नीतीश को लेकर इंडी अलायंस की बैठक में नीतीश का पक्ष मजबूती से नहीं रखा।

ललन सिंह अध्यक्ष पद से हटेंगे या हटा दिए जाएंगे

ललन सिंह से नीतीश नाराज तो हुए, लेकिन वे सीधे उन्हें हटाने के पक्ष में नहीं थे। नीतीश चाहते थे कि पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष बना कर ललन सिंह की नकेल कसी जाए। इस बीच ललन सिंह ने ही उनकी मंशा भांप ली और इस्तीफे की पेशकश कर दी। बैठक से लौटने के 36 घंटे बाद नीतीश कुमार अचानक ललन सिंह के घर गए तो पहले लोगों की समझ में नहीं आया कि वे क्यों गए हैं। बाद में छन कर जो बाते निकलीं, उससे पता चला कि नीतीश उन्हें समझाने-मनाने गए थे। इसी क्रम में ललन को साथ लेकर नीतीश मंत्री विजय कुमार चौधरी के घर भी गए। इतना ही नहीं, नीतीश ने ललन को उनके घर तक भी छोड़ा। अब तो सियासी गलियारे में यह चर्चा आम हो गई है कि ललन सिंह अपने इस्तीफे पर अड़े हुए हैं। राष्ट्रीय परिषद और कार्यकारिणी में महज उनके इस्तीफे की मंजूरी की रस्म अदायगी होनी है।

नीतीश कुमार का मन भी अब बदला-बदला दिख रहा

नीतीश कुमार के बारे में यह बात सभी जानते हैं कि वे कब कौन-सा कदम उठाएंगे, कहना मुश्किल है। वर्ष 2015, 2017, 2022 में नीतीश ने जो कुछ किया, उसके बारे में किसी को अनुमान भी नहीं था। वर्ष 2015 में वे महागठबंधन के साथ गए। 2017 में भाजपा के साथ आ गए और 2022 में फिर महागठबंधन के साथ चले गए। एक बार फिर वे वैसा ही कुछ कर दिखाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। भाजपा के भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि 2019 की तरह पार्टी इस बार बिहार की 39 नहीं, बल्कि सभी 40 सीटों पर कब्जा जमाने की तैयारी में है। उसे नीतीश कुमार जैसे एक दमदार नेता का साथ चाहिए। नीतीश भाजपा के परखे हुए आदमी हैं। इसलिए दोनों की दोस्ती फिर परवान चढ़ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

भाजपा की एक शर्त पर अटका है नीतीश का मामला

सूत्रों के मुताबिक भाजपा के साथ नीतीश की सारी बातें हो चुकी हैं। इसमें ललन सिंह अवरोध के तौर पर माने जाते हैं। इसीलिए नीतीश पहले पार्टी नेताओं का कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मन टटोलना चाहते हैं। नीतीश को भी पता है कि जेडीयू के ज्यादातर सांसद-विधायक भाजपा के साथ कंफर्ट फील करते हैं। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नीतीश और भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच कड़ी का काम कर रहे हैं। सब कुछ सही दिशा में जा रहा है, पर भाजपा की एक शर्त नीतीश के गले नहीं उतर रही है। बस उसी को हल करना बाकी है। भाजपा चाहती है कि नीतीश कुमार की पार्टी साथ रहे, लेकिन सीएम वे न बनें। उनको सीएम न बना कर बीजेपी जेडीयू से दो उपमुख्यमंत्री बनाने को तैयार है। नीतीश चाहते हैं कि किसी भी सूरत में वे 2025 तक सीएम बने रहें। वैसे भी नीतीश ने 2025 का चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़े जाने की घोषणा पहले ही कर दी है। अब बीजेपी को तय करना है कि नीतीश को वह कहां एकोमोडेट करेगी, जो उनके मान-सम्मान के अनुकूल हो। खैर, बिहार की राजनीति में खरमास में कोई नया काम नहीं होता। इसलिए हांडी में चढ़ी सियासी खिचड़ी का जायका जानने के लिए खरमास बाद का इंतजार करना उचित होगा।

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