2 अक्टूबर को यूपी के मुग़लसराय में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री कद में छोटे लेकिन व्यक्तित्व हिमालय की तरह ऊँचा और तठस्त। 11 फरवरी 1966 का वह काला दिन जोह लील गया इस महान इंसान को, भारत ने उस दिन सही मायनो में अपना लाल खो दिया, खबर आयी की तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकंद में हृदय गति रुकने से मौत हो गयी।
क्या यह उनकी प्राकृतिक मौत थी या कुछ और?
ताशकंद में हुई उनकी मौत बहुत गहरे सवाल छोड़ गयी जो आज तक अनसुलझे हैं, अब 52 साल बाद सरकार ने उन अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने के लिए सीबीआई जांच का फैसला लिया है।
1965 में पाकिस्तान ने अचानक फाजिल्का नामक जगह पर आक्रमण कर दिया और हमे काफी जानें गवानी पड़ीं, सेना को अचानक हुए हमले के कारण सम्भलने में थोड़ा वक़्त लगा लेकिन एक बार सम्भलते ही, मुहतोड़ जवाब दिया गया और घर में अंदर तक घुस कर मारा।
शास्त्री जी का सटीक और त्वरित निर्णय काम आया, और युद्ध में पाकिस्तान की पतली होती हालत देख संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ ने इसमे हस्तछेप किया। सोवियत संघ ने ताशकंद में युद्ध विराम मेजबानी का प्रस्ताव दिया, उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किये।
वो काली रात
शास्त्री जी अल्पाहार लेकर सो गए थे, कुछ देर बाद अचानक खांसी शुरू हुई, उस समय उनके कमरे में आपातकालीन सहायता के लिए घंटी वैगरह नहीं थी, इसलिए वो स्वयं चलकर अपने सेक्रेटरी जगन्नाथ के कमरे पर गए और दरवाजा खटखटाये।
दरवाजा खुला, लेकिन शास्त्री जी मारे दर्द के तड़प रहे थे, जगन्नाथ ने शास्त्री जी को संभाला और पानी पिलाया फिर डॉक्टर के लिए आवाज लगायी। अफ़सोस डॉक्टर वहां उपलब्ध ही नहीं था, सबसे नज़दीक डॉक्टर लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर था, जब तक डॉक्टर आते, शास्त्री जी प्राण त्याग चुके थे।

एक नजर मे सब प्राकृतिक ही लगता है लेकिन कुछ बातें जो खटकती है वो हैं:-
- उस रात खाना शास्त्री जी के खानसामे रामनाथ ने नहीं बल्कि सोवियत संघ में भारत के राजदूत टी एन कॉल के खानसामे मोहम्मद ने बनाया था।
 
- लाल बहादुर शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने शव देखते ही हार्ट अटैक की थ्योरी को सिरे से नकार दिया और शास्त्री जी के नीले पड़ते शरीर पर सवाल उठाया? जो की ज़हर देकर मरने की तरफ इशारा करते थे, उन्होने उस वक़्त भी पोस्टमार्टम के साथ ही उच्च स्तरीय जाँच की मांग भी की जिससे तत्कालीन सरकार ने अनदेखा कर दिया।
 
- शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री ने सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाये थे, उन्होने कहा था की, आखिर होटल ताशकंद शहर से 20 KM दूर क्यों रखा गया, कमरे में फ़ोन क्यों नहीं था, और सबसे संदेहास्पद उनकी वोः डेअरी नहीं मिली जो वो हमेश लिखते थे, वो डेअरी वापस नहीं आयी।
 
- एक प्रधानमंत्री की मौत वो भी दूसरे देश में और देश वापस लेकर उनका पोस्टमार्टम भी न करवाना क्या कई सवाल नहीं खड़े कर देता?
 
- अगर उसी वक़्त पोस्टमार्टम हो जाता तो रहस्य्मयी मौत पर से पर्दा उठ जाता, शायद कोई बड़े रसूख का ही था जो नहीं चाहता था की पर्दा उठे।
 
- 1977 में नारायण संसदीय समिति के सामने गवाही देने आ रहे डॉक्टर आर एन चुग की गाडी को ट्रक द्वारा टक्कर मरनाऔर उसी टक्कर में उनकी मौत होना।
 
- दूसरे गवाह रामनाथ का भी इसी तरह ट्रक से टक्कर मे मौत होना।
 
- गृह मंत्रालय द्वारा जाँच को जिला स्तर की पुलिस को सौंपना, फिर होता है राज नारायण कमिटी का गठन, लेकिन ढाक के तीन पात यह टीम भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची, यहाँ तक की संसद की लाइब्रेरी मे इस जाँच से जुड़े कोई रिकॉर्ड भी नहीं हैं।
 
जाँच के घेरे मे कई बड़े नाम:-
शास्त्री जी की मौत की गुथी अभी सुलझी भी नहीं थी की रूस, पाकिस्तान और इंदिरा गाँधी का नाम तक इसमे उछला, अब सवाल यह था की जब समझौते पर हस्ताक्षर हो ही गए थे तब पाकिस्तान ऐसा क्यों करता? रूस के पास भी ऐसा करने की कोई खास वजह नहीं थी….आखिर मे सुई इंदिरा गाँधी पर आकर टिक गयी। इसके पीछे एक खास कारन भी था- शाष्त्री जी के रहते इंदिरा कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाती (यह मात्र एक संभावना है, इसे सिद्ध करने के लिए NVR24 के पास कोई सबूत नहीं हैं, यह हमारी कोरी कल्पना मानी जाये चूँकि यह सभी बातें लोगों की चर्चाओं और तब से अब तक के राजनितिक घटनाक्रम पर आधारित हमारी सोच है, इसके जरिये हम किसी की भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते)
कुछ वक़्त बाद सीआईए के निदेशक रॉबर्ट करले ने एक साक्षात्कार में खुलासा किया की सीआईए ने ही 1966 में लाल बहादुर शास्त्री और डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा को मारा था। इसमे सच्चाई कितनी है हम यह भी प्रमाणित करने की स्थिति मे नहीं हैं।
