नेपाल में Gen-Z आंदोलन के बाद भड़की हिंसा शांत हो गई है. काठमांडू समेत देश के अलग-अलग हिस्सों पर हालात पटरी पर लौट रहे हैं. अंतरिम सरकार बनाने की कवायद तेज है. राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के आवास पर देर रात तक बैठकों का सिलसिला चलता रहा, लेकिन नई सरकार का मुखिया कौन होगा, इसको लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है. कहा जा रहा है कि सुशीला कार्की के नाम पर Gen-Z, बालेन शाह और कुलमन घिसिंग समेत कई लोग सहमत हैं, यहां तक कि आर्मी चीफ अशोक राज सिगदेल भी हामी भर चुके हैं, लेकिन फिर क्यों सुशीला कार्की के नाम के ऐलान में देरी हो रही है?
काठमांडू से लेकर नेपाल के दूसरे हिस्सों तक जब Gen-Z आंदोलन के दौरान हिंसा भड़की हुई थी और केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, उस समय प्रदर्शनकारी काठमांडू के मेयर और रैपर बालेन शाह को अपना नेता मान रहे थे. उस समय ऐसा लग रहा था कि बालेन शाह ही अंतरिम सरकार के मुखिया होंगे. हालांकि बाद में आंदोलनकारियों ने भ्रष्टाचार जेल में बंद पूर्व डिप्टी प्राइम मिनिस्टर रबी लामिछाने को भी छुड़ा लिया तो उनका नाम भी रेस में शामिल हुआ. इसके बाद कुलमन घिसिंग और सुदन गुरुंग का नाम भी सामने आया, लेकिन धीरे-धीरे कर सबने अपना नाम वापस ले लिया. बालेन शाह ने तो खुलकर सुशीला कार्की को अपना समर्थन दिया.
सुशीला कार्की के नाम का ऐलान क्यों नहीं?
आर्मी चीफ ने Gen-Z प्रदर्शनकारियों से मीटिंग के दौरान उन्हें आश्वासन भी दिया कि वो जिन्हें बताएंगे, वहीं अंतरिम सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे, लेकिन इस बीच सामने आया है कि नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं हैं. उन्होंने जोर देकर कहा है कि संकट का कोई भी समाधान मौजूदा संविधान के ढांचे के भीतर ही खोजा जाना चाहिए. उनके इस रुख को नेपाली कांग्रेस, सीपीएन (यूएमएल), माओवादी और मदेश-आधारित समूहों सहित प्रमुख दलों का समर्थन है.
सुशीला कार्की पर क्यों फंसा पेच?
नेपाल में इस समय आर्मी चीफ और राष्ट्रपति के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिल रही है. जहां आर्मी चीफ चाहते हैं कि आंदोलनकारियों की मांग मानी जाए, वहीं राष्ट्रपति संविधान का हवाला दे रहे हैं. दरअसल नेपाल का संविधान कहता है कि रिटायर्ड न्यायाधीश को राजनीतिक या संवैधानिक पद पर आसीन नहीं होना चाहिए. चूंकि सुशीला कार्की नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस रह चुकी हैं. यही वजह से राष्ट्रपति पौडेल बार-बार संविधान की दुहाई दे रहे हैं.
कौन हैं सुशीला कार्की?
सुशीला कार्की नेपाल की पहली चीफ जस्टिस रह चुकी हैं. उन्होंने महेन्द्र मोरंग कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली. सुशीला कार्की ने 1979 में वकालत शुरू की. 2007 में उन्हें सीनियर एडवोकेट बनाया गया. 2009 में उन्हें नेपाल सुप्रीम कोर्ट का अधिवक्ता न्यायाधीश बनाया गया और 2010 में स्थायी न्यायाधीश बना दिया गया. उन्होंने 11 जुलाई 2016 से 6 जून 2017 तक नेपाल की मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा दी.
सुशीला कार्की के चीफ जस्टिस रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए. उन्होंने कई अहम फैसले दिए, जिनमें नागरिकता, पुलिस नियुक्तियों में घोटाला, फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और भ्रष्टाचार से जुड़े अन्य मामले. सुशीला कार्की इतनी एक्टिव थीं कि राजनीतिक दलों को इसमें संकट नजर आ रहा था. 2017 में नेपाल के राजनीतिक दलों ने उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, जिसके खिलाफ नेपाल की जनता हो गई और फिर इस प्रस्ताव को वापस लिया गया.