EPIC नंबर विवादः चुनाव आयोग का ‘फरमान’- वोटर ID को आधार से करना होगा लिंक, वरना हो जाएंगे लाइन हाजिर

EPIC Number voter id controversy: निर्वाचन आयोग ने मतदाता पहचान पत्रों में एक ही एपिक नंबर विवाद के समाधान के लिए आधार से जोड़ने की मुहिम शुरू की है. आधार न देने पर मतदाताओं को ERO के सामने कारण बताना होगा.

बीते दिनों कई मतदाता पहचान पत्रों में एक ही एपिक नंबर संबंधी उठे विवाद के समाधान के लिए निर्वाचन आयोग ने बड़ा फैसला किया है. इसमें अब मतदाताओं को लाइन हाजिर करने की योजना बनाई गई है.

दरअसल, निर्वाचन आयोग ने इस पूरे विवाद को थामने और कथित फर्जी मतादाताओं का पता लगाने के लिए आधार को जरिया बनाया है. उसने मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने की मुहिम शुरू की है. ऐसे में अगर कोई मतदाता वोटर आईडी को आधार से जोड़ने में आनाकानी करता है उसे आयोग के सामने लाइन हाजिर होना पड़ेगा. मतदाता को इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) के सामने खुद जाकर यह बताना पड़ सकता है कि उसने आधार क्यों नहीं दिया.

आमतौर पर ERO एक सिविल सेवा या राजस्व अधिकारी होता है. उसके पास 1950 के जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 13B के तहत विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदाता सूची तैयार करने, अपडेट करने और संशोधन करने का अधिकार होता है. इन्हें निर्चावन आयोग राज्य सरकारों के साथ सलाह करके नियुक्त करता है.

वर्ष 2023 तक चुनाव आयोग ने 66 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं के आधार विवरण इकट्ठा किए हैं, जिन्होंने इसे अपनी मर्जी से दिया था. लेकिन इन 66 करोड़ मतदाताओं के दो डेटाबेस को जोड़ा नहीं गया है. यानी, अभी तक आधार का इस्तेमाल मतदाता सूची से डुप्लिकेट (दोहरे) नाम हटाने या इसे साफ करने के लिए नहीं हुआ है.

देश में लगभग 98 करोड़ पंजीकृत मतदाता

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब आयोग के ताजा प्रस्ताव के मुताबिक जो मतदाता अपने 12 अंकों का आधार नंबर नहीं देगा, उसे ERO के सामने खुद जाकर कारण बताना होगा. यह प्रस्ताव पिछले हफ्ते चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों और गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और यूआईडीएआई के प्रतिनिधियों की एक उच्च-स्तरीय बैठक में चर्चा में आया. यह संभवतः फॉर्म 6B में संशोधन के साथ लागू होगा.

इस बदलाव से चुनाव आयोग यह साफ करना चाहता है कि आधार नंबर देना पूरी तरह स्वैच्छिक है. साथ ही, यह सुप्रीम कोर्ट के सामने सितंबर 2023 में दिए अपने वादे को पूरा करना चाहता है. उस वक्त चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया था कि वह फॉर्म में जरूरी बदलाव कर यह सुनिश्चित करेगा कि मतदाताओं को यह समझ आए कि आधार देना उनकी मर्जी पर निर्भर है.

आधार नंबर इकट्ठा करने के लिए फॉर्म 6B

अभी आधार नंबर इकट्ठा करने के लिए फॉर्म 6B है. इसमें मतदाताओं के पास आधार न देने का कोई विकल्प नहीं है. इसमें सिर्फ दो ही विकल्प हैं. पहला तो आधार दें, या यह घोषणा करें कि मेरे पास आधार नंबर नहीं है, इसलिए मैं इसे नहीं दे सकता. इसको लेकर 18 मार्च को अहम बैठक हुई थी. अब फॉर्म 6B में बदलाव होगा. अब इसमें ‘मेरे पास आधार नहीं है’ वाला बयान हटाया जाएगा.

इसके बजाय, एक नया बयान होगा जिसमें मतदाता कहेगा कि वह दूसरा दस्तावेज दे रहा है और एक तय तारीख को ईआरओ के सामने जाकर यह बताएगा कि उसने आधार क्यों नहीं दिया.

इस बदलाव को लागू करने के लिए कानून मंत्रालय को गजट नोटिफिकेशन जारी करना होगा, जो तब होगा जब चुनाव आयोग सरकार को औपचारिक प्रस्ताव भेजेगा. यह संशोधन बिहार में अगले विधानसभा चुनाव से पहले होने की संभावना है.

दरअसल, बीते दिनों महाराष्ट्र और दिल्ली चुनाव में डिप्लीकेट मतदाताओं का मुद्दा उठा. फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने मीडिया के सामने एक एपिक नंबर एक से अधिक वोटर आईडी पंजीकृत होने के आरोप लगाए थे. इसके बाद चुनाव आयोग ने भी माना था कि अपवाद स्वरूप कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं. इसके बाद ही डुप्लीकेट मतदाताओं को पहचानने के लिए यह अभियान चलाया गया है.

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