Parliament Winter Session 2025

वंदे मातरम पर संसद में होगी चर्चा, 10 घंटे का समय अलॉट, पीएम मोदी होंगे शामिल

Vande Mataram Discussion: भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर इस हफ्ते के अंत में संसद के शीतकालीन सत्र में विशेष चर्चा का आयोजन किया जाएगा. लोकसभा में इस पर चर्चा के लिए 10 घंटे का समय निर्धारित किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग लेंगे. लोकसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में सरकार ने वंदे मातरम को प्राथमिकता दी, जबकि कांग्रेस ने एसआईआर और चुनावी सुधारों पर बहस की मांग की. टीएमसी ने वंदे मातरम पर लोकसभा में विशेष चर्चा का समर्थन किया है.

बीते 7 नवंबर को ‘वंदे मातरम’ गीत के 150 साल पूरे होने पर दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने इस गीत के साथ तोड़-मरोड़ की. पीएम मोदी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से 1937 में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने मूल ‘वंदे मातरम’ गीत से महत्वपूर्ण पद हटा दिए थे. ‘वंदे मातरम’ को टुकड़ों में तोड़ दिया गया. इसने विभाजन के बीज भी बो दिए. यह अन्याय क्यों किया गया?’

वंदे मातरण की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर केंद्र सरकार ने विशेष स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया था. पीएम मोदी के बयान पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पलटवार करते हुए उन पर 1937 की कांग्रेस वर्किंग कमेटी और रविंद्रनाथ टैगोर का अपमान करने का आरोप लगाया. उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर लिखा था, ‘प्रधानमंत्री का CWC और टैगोर का अपमान करना चौंकाने वाला है, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आरएसएस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं निभाई थी.’

जयराम रमेश ने X पर लिखा, ’26 अक्टूबर से 1 नवंबर 1937 तक कोलकाता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई थी, जिसमें गांधीजी, नेहरू, पटेल, बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, सरोजिनी नायडू, जे.बी. कृपलानी, भुलाभाई देसाई, जमनालाल बजाज और नरेंद्र देव समेत कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए थे.

उन्होंने लिखा, ’28 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम पर CWC का बयान जारी हुआ था, जो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह से गहराई से प्रभावित था. प्रधानमंत्री ने इस ऐतिहासिक समिति और टैगोर दोनों का अपमान किया है.’

भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था और ये 7 नवंबर, 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था. इसे बाद में उनके मशहूर उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया. यह उपन्यास संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित है. यह बंगाल प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ चलने वाला विद्रोह था. तब बिहार और उड़ीसा भी बंगाल का हिस्सा था.

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