भारत की राजनीति में महिलाओं को फोकस में रखकर बनाई गई कल्याणकारी योजनाएं अब गेमचेंजर बन रही हैं. महिलाओं के खाते में सीधे नगद ट्रांसफर की जाने वाली स्कीम तो भारत की राजनीति में वोट लेने का एक जांचा- परखा तरीका बन गई है. मध्य प्रदेश में इस योजना की कामयाबी के बाद यही कहानी महाराष्ट्र और झारखंड में भी रिपीट हुई है.
भारतीय राजनीति के बदलते परिदृश्य में एक ट्रेंड स्पष्ट रूप से उभरा है. ये ट्रेंड है महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कल्याणकारी योजनाएं चुनावी जीत में निर्णायक फैक्टर साबित हो रही हैं. राज्यों भर में राजनीतिक दलों ने महिला- केंद्रित कल्याण कार्यक्रमों की घोषणा की है और उसे डिलीवर करते हुए महिला मतदाताओं का एक मजबूत समर्थन आधार बनाया है. महिला मतदाताओं का ये आधार राजनीतिक दलों के लिए मजबूत वोटर बैंक साबित हुआ है. झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर से इस ट्रेंड की पुष्टि की है. इस पैटर्न ने इस बात को रेखांकित किया है कि राजनीतिक परिणामों को आकार देने में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है.
महिलाओं पर फोकस कल्याणकारी योजनाएं
कुछ ही साल पहले तक राजनीतिक विश्लेषक पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कम मतदान प्रतिशत की आलोचना किया करते थे. ये स्थिति तब है जब वोटर लिस्ट में महिलाओं की मौजूदगी लगभग आधी है. इस अंतर को पाटने के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश की सरकार ने देश में पहली बार ऐसी स्कीम लॉन्च की थी जो लड़कियों और महिलाओं पर फोकस थी. इस स्कीम ने एमपी का पॉलिटिकल लैंडस्कैप बदल दिया.
चुनाव से कुछ दिन पहले लॉन्च की गई लाडली बहना योजना एमपी में गेम-चेंजर साबित हुई. डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का लाभ देने वाली इस योजना ने महिला मतदाताओं को रिकॉर्ड संख्या में वोट डालने के लिए प्रेरित किया. इसके परिणामस्वरूप भाजपा की भारी जीत हुई और यह रणनीति चुनाव जीतने का फॉर्मूला साबित हुई.
पिछले कुछ सालों में कई राज्य सरकारों ने ऐसी कल्याणकारी योजनाओं लागू की है जिसके फोकस में महिलाएं हैं. इनमें शिक्षा और स्वास्थ्य में महिलाओं की बेहतरी के लिए सीधा नगद ट्रांसफर शामिल है. मजेदार बात यह है कि इन योजनाओं को महिलाओं ने हाथों हाथ लिया और बदले में सरकारों जमकर वोट दिया.
ऐसे राज्य जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव है वहां की सरकारों ने भी ऐसे ही स्कीम लॉन्च किए हैं. इन स्कीम के केंद्र में महिलाओं को सीधा फायदा पहुंचाना शामिल है. हालांकि आलोचक कई बार इन कदमों को पॉपुलिस्ट कदम बताते हैं लेकिन इन कदमों से जो राजनीतिक लाभ मिलता है उसे नकारा नहीं जा सकता है.
महाराष्ट्र और झारखंड इन योजनाओं की सफलता के हालिया उदाहरण हैं.
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के इस चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने महिला-केंद्रित पहलों को प्राथमिकता दी. सरकार ने महिला सशक्तिकरण योजना का विस्तार किया, जिसमें महिलाओं की शिक्षा और कौशल विकास के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किए गए. लाड़की बहिन योजना इस सरकार का ट्रेड मार्क स्कीम बन गई. इस योजना के तहत सरकार हर परिवार की महिला मुखिया को प्रतिमाह 1500 रुपये दे रही है. चुनाव के तुरंत पहले सरकार ने रणनीतिक चाल चलते हुए इस रकम को 2500 तक करने का वादा किया. शिंदे सरकार ने वादा किया कि अगर वे फिर से जीत कर आएंगे तो हर परिवार की मुखिया महिला को हर महीने 2500 रुपया दिया जाएगा.
महिला वोटरों पर शिंदे सरकार का फोकस रंग लाया. इस चुनाव में महिलाएं बढ़ चढ़कर मतदान करने निकलीं. खासकर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में बड़ी संख्या में महिलाएं वोट देने निकलीं और चुनाव के नतीजे बताते हैं कि महिलाओं ने महायुति सरकार को जमकर वोट किया. यही वजह रही कि जिन सीटों पर महा विकास अघाडी महायुति को कांटे की टक्कर दे रही थी वहां भी महायुति ने महिला वोटरों के दम पर बंपर कामयाबी हासिल की.
झारखंड
महाराष्ट्र की कामयाबी झारखंड में भी देखने को मिली. यहां भी महिला केंद्रित योजनाओं का असर देखने को मिला. मइयां सम्मान योजना ने झारखंड की राजनीति में हलचल मचा दी. इस योजना के तहत राज्य सरकार योग्य महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दे रही थी. हेमंत सरकार इस योजना के 4 किश्त महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर भी चुकी है. इसके अलावा हेमंत सरकार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, सिंगल मदर को नगद सहायता, बेरोजगार महिलाओं को नगद सहायता देने की भी स्कीमें शुरू की है. मइयां सम्मान योजना हेमंत सरकार की गुडविल और राजनीति निष्ठा को बढ़ाने में सफल रही. आदिवासी, गरीब और ग्रामीण इलाकों में इन स्कीम की जबरदस्त चर्चा रही. चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इन स्कीम्स का पूरजोर फायदा हेमंत सरकार को मिला और जेएमएम प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करने में सफल रही.
महिला केंद्रित योजनाएं क्यों सफल होती है?
- प्रत्यक्ष लाभार्थीः महिलाओं को केंद्र रखकर बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं में अक्सर प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण या ठोस लाभ शामिल होते हैं. इससे लाभार्थी तत्काल और बिना झंझट के फायदा महसूस करता है. उसे बिचौलियों से मुक्ति मिलती है और वो सशक्त महसूस करता है. इस फायदे के बदले में उसे संबंधित पार्टी को वोट देने में गुरेज नहीं होता है.
 - सामुदायिक प्रभावः महिलाएं, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, परिवार और समुदाय के निर्णय लेने में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से कई वोटों को प्रभावित करती हैं. एक महिला जब समूह में होती है और इन योजनाओं की चर्चा करती है तो दूसरी महिलाएं भी इससे प्रभावित होती हैं.
 - सामाजिक अंतर को पाटनाः ये योजनाएं लंबे समय से चली आ रही असमानताओं को टारगेट करती हैं. ये योजनाएं सिंगल मदर, विधवाओं और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को तुरंत आकर्षित करती हैं. क्योंकि इसमें बिना किसी सरकारी दखल के उन्हें नगद राशि की प्राप्ति होती है.
 - राजनीतिक निष्ठा का निर्माणः लाभार्थी केंद्रित कार्यक्रम महिलाओं के बीच विश्वास और वफ़ादारी को बढ़ावा देते हैं, जो पार्टियां इन्हें अमल में लाती हैं उनके लिए ये महिलाएं परमानेंट वोट बैंक में तब्दील हो जाती हैं.
 
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजों से एक साफ तस्वीर उभर कर सामने आती है: महिला मतदाता अब खामोश वोटर नहीं रह गई हैं. महिलाओं को केंद्र में रखकर बनाई गई कल्याणकारी योजनाएं राजनीतिक दलों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरी हैं, जो चुनावी रणनीतियों और शासन की प्राथमिकताओं को नया रूप दे रही हैं.
जैसे-जैसे महिलाएं खुद को निर्णायक मतदाता समूह के रूप में स्थापित कर रही हैं, स्त्रियों के प्रति संवेदनशील शासन प्रणाली पर जोर बढ़ने वाला है, जो न केवल चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा बल्कि भारत में व्यापक राजनीतिक लैंडस्कैप पर भी असर डालेगा. महिलाओं को सशक्त बनाना अब केवल एक सामाजिक अनिवार्यता नहीं रह गई है, यह भारतीय राजनीति में जीत के लिए रणनीतिक आवश्यकता बन गई है.■

