Assembly Elections 2024: बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में 28 सीटों पर पेच फंसा हुआ है। इनमें से कई सीटों ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस, उद्धव शिवसेना और राकांपा तीनों दावे कर रहे हैं। बात इतनी भर नहीं है महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की चाहत करीब दर्जन भर सीटों पर चुनाव लड़ने की है।
Assembly Elections 2024: हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच एक बार फिर मुकाबला होने जा रहा है। यह हाई वोल्टेज मुकाबला महाराष्ट्र और झारखंड में है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी दोनों राज्यों में सीट बंटवारे पर पेच फंस गया है।

महाराष्ट्र में एमवीए के घटक दल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना और राकांपा के बीच रस्साकशी चल रही है। कोई कम सीट लेने के लिए तैयार नहीं है। सीट बंटवारे पर फायदे का सौदा करने के लिए जोर-आजमाइश का दौर जारी है। नेता सीटों पर अपनी दावेदारी ज्यादा और दूसरों की कमजोर बता रहे हैं।
महाराष्ट्र में उद्धव की शिवसेना तो कुछ ज्यादा ही आक्रामक तेवर दिखा रही है। महाराष्ट्र जैसा ही हाल झारखंड में भी दिखाई दे रहा है। यहां कांग्रेस, झामुमो और राजद में सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही है। सीटों बंटवारे पर बने गतिरोध को तोड़ने के लिए बैठकों और बातचीत का दौर चल रहा है।
17 अक्टूबर को एमवीए की हुई मैराथन बैठक
अब सबसे पहले बात महाराष्ट्र की। यहां एमवीए यानी महा विकास अघाड़ी के दलों ने सीटों पर बने गतिरोध को दूर करने के लिए 17 अक्टूबर को मैराथन बैठक की। यह बैठक करीब 9 घंटे तक चली लेकिन कोई सीट बंटवारे पर कोई मान्य फॉर्मूला नहीं निकल सका। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में 28 सीटों पर पेच फंसा हुआ है। इनमें से कई सीटों ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस, उद्धव शिवसेना और राकांपा तीनों दावे कर रहे हैं। बात इतनी भर नहीं है महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की चाहत करीब दर्जन भर सीटों पर चुनाव लड़ने की है। सीटों पर दावे और प्रादेशिक नेताओं के बीच जारी जुबानी जंग को देखते हुए शिवसेना नेता संजय राउत ने यहां तक कह दिया कि सीट बंटवारा प्रदेश के नेताओं की वश की बात नहीं।
राउत ने पटोले पर साधा निशाना
राउत ने कहा है कि इस मसले पर वह जल्द ही राहुल गांधी से बात कर सकते हैं। शिव सेना ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले पर गंभीर आरोप लगाए हैं। वह कह रही है कि पटोले की वजह से सीट बंटवारा नहीं हो पा रहा है और सीट बंटवारे वाली बैठक में अगर पटोले रहे तो वह इस बैठक में शामिल नहीं होगी। ये बयानबाजी यह बताने के लिए काफी है कि सीट बंटवारे पर एमवीए में सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र की 260 सीटों पर लगभग बात बन गई है लेकिन 28 सीटों पर शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस में पेच है। कांग्रेस मुंबई की सीटों पर दावेदारी ठोक रही है तो शिवसेना (विदर्भ) की सीटों पर। विदर्भ कांग्रेस का गढ़ माना जाता है तो वहीं मुंबई शिवसेना का। 2019 में शिवसेना बीजेपी के साथ थी और कांग्रेस एनसीपी के साथ मैदान में उतरी थी, लेकिन इस बार राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है।
झारखंड में सीट बंटवारे का गणित बिगड़ा
सीट बंटवारे पर रस्साकशी का यही आलम झारखंड में भी है। पहले खबर आई कि सीट बंटवारे पर इंडिया गठबंधन के दलों के बीच सहमति बन गई है लेकिन फिर बाद में बताया गया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने लिए दो और सीटों की मांग कर दी है जिसके बाद मामला उलझ गया। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 43 सीटों, कांग्रेस ने 31 और राजद ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार सीट बंटवारे पर मोटे तौर पर जो सहमति बनी है है, उस फॉर्मूले के तहत जेएमएम को 43, कांग्रेस को 29, राजद को पांच सीटों पर चुनाव लड़ना है लेकिन इस बार इस गठबंधन में सीपीएम माले भी शामिल हुई है। उसे चार सीटें देने की बात सामने आई है। इस बीच भाजपा के जमुआ के विधायक केदार हाजरा और आजसू के पूर्व विधायक उमाकांत रजक के झामुमो में शामिल होने से सीट बंटवारे का गणित गड़बड़ा गया है। जेएमएम ने कांग्रेस से दो और सीटें मांग ली हैं, जिसके बाद नया पेच फंस गया है। झारखंड में सीट शेयरिंग को लेकर एक पेच पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर को लेकर भी फंसा है। कांग्रेस पिछली बार पलामू की 4 सीटों पर मैदान में उतरी थी। इस बार पार्टी यहां नहीं लड़ना चाहती है।
23 नवंबर को आएंगे दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे
दोनों राज्यों में सीट शेयरिंग पर बात न बनने की एक बड़ी वजह हरियाणा में कांग्रेस की हार है। इस हार के बाद सहयोगी दल कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं हैं। दूसरा, सीट बंटवारे पर बातचीत अभी प्रादेशिक नेताओं के बीच चल रही है लेकिन इस पर अंतिम मुहर पार्टी आलाकमान की तरफ से लगेगा। उम्मीद की जा रही है पार्टी के बड़े नेता सीटों पर बने गतिरोध को सुलझा लेंगे। बहरहाल, झारखंड में विधानसभा की 81 सीटों के लिए चुनाव दो चरणों 13 नवंबर, 20 नवंबर को होंगे। जबकि महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटों के लिए मतदान एक चरण में 20 नवंबर को होगा। दोनों ही राज्यों के चुनाव नतीजे 23 नवंबर को घोषित होंगे।
झारखंड में कहां फंसा है पेच?
झारखंड में 2 चरणों में चुनाव होने हैं. यहां पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है. राज्य में विधानसभा की 81 सीटें हैं और कांग्रेस के साथ 3 पार्टी गठबंधन में है. झारखंड मुक्ति मोर्चा बड़े भाई की भूमिका में है.
सूत्रों के मुताबिक राज्य में माले और आरजेडी की सीट लगभग फिक्स हो गई है. आरजेडी को इस बार 5 और माले को लड़ने के लिए 4 सीटें मिल रही हैं. पेच कांग्रेस की को लेकर फंसा है.
इस बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस को झामुमो सिर्फ 27 सीटें ही देना चाह रही है. कांग्रेस झारखंड में पिछली बार 31 सीटों पर लड़ी थी. हालांकि, झामुमो का तर्क है कि पार्टी सिर्फ 27 सीटों पर ही परफॉर्म कर पाई. हरियाणा चुनाव से पहले यहां एक फॉर्मूला तय हुआ था, जिसमें कहा गया था कि झामुमो 43, कांग्रेस 29, आरजेडी 5 और माले 4 सीटों पर लड़ सकती है, लेकिन अब झामुमो कांग्रेस को सिर्फ 27 सीट देने को ही तैयार है.
सीट शेयरिंग को लेकर एक पेच पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर को लेकर भी फंसा है. कांग्रेस पिछली बार पलामू की 4 सीटों पर मैदान में उतरी थी. इस बार पार्टी यहां नहीं लडना चाहती है.
सवाल- पेच क्यों फंस रहा है?
- हरियाणा में हार के बाद क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा तरजीह देने के मूड में नहीं है. सारा झोल हरियाणा के बाद ही देखने को मिल रहा है. झारखंड में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया था, लेकिन आखिर वक्त में झामुमो ने कांग्रेस की 2 और सीटें घटा दी. <
- कांग्रेस की प्रदेश इकाई पर सीट शेयरिंग का जिम्मा है. प्रदेश के नेता अपने हिसाब से सीटों का बंटवारा चाहते हैं. मामला इसलिए भी फंसा हुआ है. अब हाईकमान के एक्टिव होने के बाद कहा जा रहा है कि विवाद एक-दो दिन में सुलझ सकता है.
झारखंड में वापसी और महाराष्ट्र में जीत की चुनौती
झारखंड में अभी कांग्रेस झामुमो के साथ सरकार में शामिल है. यहां पर उसके सामने सत्ता में वापस आने की चुनौती है. 2019 में कांग्रेस को झारखंड की 16 सीटों पर जीत मिली थी. पार्टी के सामने पुराने परफॉर्मेंस को कायम रखने की चुनौती है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने जीत की चुनौती है. 2014 से ही यहां कांग्रेस दर-बदर की स्थिति में है. 2019 में उसे 44 सीटों पर जीत मिली थी. कुछ सालों के लिए कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार में रही भी, लेकिन उसे बड़ी हिस्सेदारी नहीं मिल पाई थी.

