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सीजेआई सूर्यकांत का प्रदूषण पर कड़ा सवाल-COVID में भी पराली जली फिर भी आसमान नीला क्यों था?

दिल्ली-NCR की जहरीली हवा पर आज सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई सूर्यकांत की अदालत में सुनवाई हुई. CJI की बेंच ने साफ कहा कि यह कोई सीजनल विवाद नहीं बल्कि एक लगातार निगरानी का मुद्दा है. केंद्र सरकार से पूछा गया कि कोविड के दौरान भी देश के किसानों ने पराली जलाई थी फिर भी उस दौरान आसमान नीला था. ऐसा क्‍यों हुआ. अदालत ने कहा कि अब यह मामला केवल अक्टूबर-नवंबर में ही नहीं उठेगा बल्कि इसे नियमित रूप से लिस्ट किया जाएगा ताकि सरकारें सिर्फ सीजन खत्म होने का इंतजार न करें.
सुनवाई की शुरुआत में ही CJI ने केंद्र से पूछा कि प्रदूषण से निपटने के लिए अल्पकालिक योजना क्या है. ASG ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि सरकार ने हलफनामा दायर कर दिया है जिसमें शॉर्ट-टर्म और कैटेगरी-वाइज योगदान का पूरा ब्यौरा शामिल है. उन्होंने कहा कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, UP, CPCB सहित भी हितधारकों व अन्य एजेंसियों को बैठक कर कार्ययोजना पर निगरानी करनी चाहिए.
पराली को हर साल दोषी ठहराना आसान: CJI सूर्यकांत
सुप्रीम कोर्ट यहीं नहीं रुका. CJI ने पूछा कि अब तक इन योजनाओं का सकारात्मक प्रभाव क्या पड़ा और क्या सरकार यह बता सकती है कि मौजूदा कार्ययोजना पर उसकी वैध अपेक्षाएं क्या थीं. अदालत ने कहा कि बिना डेटा प्रस्तुत किए किसी भी योजना की प्रभावशीलता का आकलन संभव नहीं. CJI सूर्यकांत ने सवाल उठाया कि कोविड-19 के दौरान भी पराली जलाई गई थी फिर भी तब आसमान नीला था. CJI ने कहा कि पराली को हर साल दोषी ठहराना आसान है जबकि किसानों का नीति-निर्माण में प्रतिनिधित्व सीमित है. उन्होंने दो टूक कहा-
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· पराली का मुद्दा न राजनीतिक बने,
· न ही राज्यों या एजेंसियों के बीच अहंकार का टकराव.
· किसानों को जागरूक और संवेदनशील बनाने की जरूरत है, न कि उन पर बोझ डालने की.
· “हमें उन्हें आवश्यक मशीनें उपलब्ध करानी होंगी.”
केंद्र सरकार की तरफ से ASG ने स्वीकार किया कि सभी राज्यों में “पराली जलाने का लक्ष्य शून्य” था, लेकिन यह हासिल नहीं हो पाया. इसके जवाब में CJI ने पूछा कि वैज्ञानिक विश्लेषणों के अनुसार सबसे अधिक प्रदूषण योगदान किस स्रोत से आता है. अदालत ने कहा कि बिना वैज्ञानिक आधार के किसी एक समूह पर दोषारोपण करना उचित नहीं.
निर्माण धूल, वाहन प्रदूषण और पालन-पर निगरानी
सीजेआई की बेंच में मौजूद जस्टिस बागची ने भी सरकार से तीखे सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि पराली ही अकेला कारण नहीं है, “निर्माण पर प्रतिबंध लगा है, पर उसका पालन कितना हुआ?” उन्होंने कहा कि सरकार को अदालत को यह बताना होगा कि किन-किन क्षेत्रों में उल्लंघन देखने को मिला और उस पर क्या कार्रवाई की गई. ASG ने बताया कि हलफनामे में वाहन प्रदूषण, पराली जलाना, निर्माण धूल, उद्योगों और अन्य स्रोतों का श्रेणीवार योगदान दर्ज है, जिसे अदालत में पेश किया जाएगा.
“हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते”
CJI सूर्यकांत ने स्पष्ट कहा कि अदालत का काम केवल टिप्पणी करना नहीं बल्कि सभी पक्षों को एक मंच देना है जहां विशेषज्ञ ठोस समाधान विकसित कर सकें. उन्होंने कहा कि अदालत अनुमान नहीं लगाएगी और न ही किसी स्रोत को पहले से दोषी मान लेगी. हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते. समाधान विशेषज्ञों से आएगा, अदालत सिर्फ मंच उपलब्ध कराती है.

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