कोरोना की जंग में धर्म से ऊपर मानवता की मिसाल

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन, जो पहले मलेरिया, ल्यूपस और रुमेटीइड गठिया के इलाज में इस्तेमाल किया गया था और वर्तमान में कोविद -19 के उपचार के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों द्वारा भारी मांग में है, पहली बार 1970 में CIPLA, एक भारतीय कंपनी द्वारा उत्पादित किया गया था। इसका नाम ख्वाजा अब्दुल हमीद द्वारा 1935 में अस्थापित मूल कंपनी अर्थात रासायनिक, औद्योगिक और फार्मास्युटिकल प्रयोगशालाओं से लिया गया था।

आपको बता दें कि अब्दुल हमीद ने जर्मनी में रसायन विज्ञान का अध्ययन किया था और जो महात्मा गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक थे। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित अब्दुल हमीद का मिशन था आम लोगों के लिए सस्ती कीमत की जेनेरिक दवाओं का उत्पादन। उनके बेटे, यूसुफ हामिद, जो खुद कैंब्रिज के रसायन विज्ञान स्नातक थे, ने कंपनी की लगाम को गरीबों को कम कीमत की गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराने की इसी भावना के साथ संभाला।

हम यहां यह भी बता दें कि सिप्ला ने HIV का इलाज करने के लिए कम लागत वाली दवाओं का उत्पादन किया था और अफ्रीकी देशों सहित कई विकासशील देशों में अपने आॅपरेशन का विस्तार किया। ऐसे समय में जब दुनिया के लाखों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और दुनिया त्राहिमाम कर रही है, कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी, सिप्ला का योगदान सराहनीय ही नहीं मानवता के एक तारणहार के रूप में स्थापित हो गया है। यह केवल देश में ही नहीं पूरी दुनिया में सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है।

ऐसे समय में इसके संस्थापक की सराहना होनी चाहिए। इसके अलावा, इस समय में जब महामारी के खिलाफ युद्ध एक निर्णायक मोड़ पर है, सभी भारतीय- हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाइयों को एकजुट होकर इस बीमारी के खिलाफ जंग में शामिल हो जाना चाहिए। हालांकि कुछ असामाजिक तत्वों को छोड़ कर हम सभी भारतीय एक हैं और हमने निर्णायक लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने की पूरी कोशिश की है। यह कोशिश अब रंग लाने लगी है। मसलन सामाजिक दूरी बनाए रखें और देश को खूंखार वायरस से मुक्त करने के लिए सरकारी दिशानिदेर्शों का सख्ती से पालन करते रहें।

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