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सियासी मैदान में कुछ इस तरह से अकेली पड़ रही कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस समय सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। केंद्र में उसकी सरकार पिछले कई सालों से वनवास काट रही है जबकि राज्यों में उसकी हालत पतली नजर आ रही है।

पिछले पांच राज्यों के चुनाव में बुरी तरह से हारने वाली कांग्रेस के अब न तो दोस्त बचे है। इतना ही नहीं सियासी मैदान में कांग्रेस पूरी तरह से अकेली पड़ती नजर आ रही है।

नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और नेता राहुल गांधी की मुश्किले तब और बढ़ गई जब प्रवर्तन निदेशालय ने समन जारी कर दिया था।इस केस ने कांग्रेस ने आवाज उठायी लेकिन अन्य किसी पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया। हालांकि शिवसेना को छोड़ दिया जाए, तो किसी अन्य विपक्षी दल इस पूरे मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस का अब अपने सहयोगी दलों के साथ रिश्तें पहले जैसे नहीं रहे।

एक इंग्लिश अखबार की माने तो कांग्रेस इस समय काफी अलग-थलग तक पड़ती नजर आ रही है क्योंकि उसके गठबंधन में शामिल अन्य पार्टी लगातार अपने फैसलों से कांग्रेस को मुश्किल में जरूर डाल रहे हैं।

इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राज्यसभा चुनाव के लिए एकतरफा उम्मीदवार को घोषणा कर दी। कांग्रेस चाहती थी कि यहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है।

और बगैर पूछे अपने उम्मीदवार का एलान किया और इस वजह से कांग्रेस को केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा। इससे पहले अप्रैल में असम में AIUDF के कुछ विधायकों की क्रॉस वोटिंग के चलते कांग्रेस का राज्यसभा उम्मीदवार को शिकस्त झेलनी पड़ी थी।

वही तमिलनाडु में सत्तारूढ़ DMK ने भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हिस्सेदार कम कर 25 सीटों रोक दी थीं जबकि 2016 में यह आंकड़ा 41 पर था।

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ भी उसके रिश्ते काफी अच्छे नजर नहीं आये क्योंकि इन दोनों पार्टियों ने कांग्रेस के साथ कोई तालमेल नहीं बैठाया जबकि कांग्रेस ने उनके साथ गठबंधन करने की इच्छा जतायी थी।

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