अमरीकी राष्ट्रपति नरेंद्र मोदी से जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे वाले अनुच्छेद- 370 को निष्प्रभावी बनाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद बढ़े तनाव को कम करने की योजना के बारे में पूछ सकते हैं। ट्रंप कश्मीर मुद्दे पर इसलिए दख़ल दे रहे हैं ताकि वे अपनी अफ़ग़ानिस्तान नीति के लिए पाकिस्तान का समर्थन सुनिश्चित कर सकें। ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि वे अमरीकी सेना को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालना चाहते हैं। ऐसा वह अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को नज़दीक आते देख कर करने की योजना बना रहे हैं, ताकि अगले साल वे फिर से राष्ट्रपति पद पर अपनी जीत सुनिश्चित कर सकें। पिछले कुछ दिनों से कयास लगाए जा रहे हैं कि अमरीकी सैनिकों की वापसी की फार्मूले पर तालिबान और अमरीका में सहमति बन चुकी है और इसकी आधिकारिक घोषणा जल्द हो सकती है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस मुलाकात में, “क्षेत्रीय तनाव को कम करने के बारे में नरेंद्र मोदी की योजना के बारे में सुनना चाहेंगे. साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर कश्मीरी लोगों के मानवाधिकार का सम्मान करने पर भी बात हो सकती है।”
भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव देने के बाद से ट्रंप लगातार कश्मीर पर बात करते आए हैं, भले ही कई बार उन्होंने यह बेमन से ही किया है।
इस शांति समझौते के लिए ट्रंप को पाकिस्तान के समर्थन की जरूरत है और पाकिस्तान चाहता है कि ट्रंप कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दें। ट्रंप के लिए अभी अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी सैनिकों की संख्या घटाना प्राथमिकता है और इसके लिए वे इमरान ख़ान को संतुष्ट करने से भी नहीं हिचकेंगे।
वहीं दूसरी ओर, भारत सरकार ने अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाकर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया है, यह दर्शाता है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ प्राथमिकताओं को लेकर स्पष्ट नीति पर चल रहा है। पाकिस्तान अपनी हताशा में लगातार कोशिश कर रहा है कि वह कश्मीर विवाद को अफ़ग़ानिस्तान के मसले से जोड़े लेकिन तालिबान की ओर से ही ध्यान दिलाया गया है, ‘कुछ पार्टियों की ओर से कश्मीर के मुद्दे को अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, इससे समस्या की स्थिति बेहतर नहीं होगी क्योंकि कश्मीर विवाद का अफ़ग़ानिस्तान से कोई लेना देना नहीं है।’
पाकिस्तान अपनी रणनीतिक भ्रम के सामने अफ़ग़ानिस्तान के बारे में भी ठीक से अंदाजा नहीं लगा पा रहा है, अफ़ग़ानिस्तान में चाहे जो भी सत्ता में आए, वह अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए भारत की ओर देखता आया है। डोनल्ड ट्रंप के आगे बढ़कर प्रस्ताव देने के बावजूद भारत सरकार ने अमरीका से स्पष्टता से कहा है कि कश्मीर, भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसला है और इसमें किसी तीसरे की कोई भूमिका नहीं है। घरेलू स्तर पर भी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, भारत की यह स्थिति बदलने वाली नहीं है।
इस सप्ताह की शुरुआत में उन्होंने कश्मीर की समस्या का अपने ही अंदाज़ में अनूठी व्याख्या करते हुए कहा, “कश्मीर काफी जटिल जगह है। वहां हिंदू भी हैं, मुसलमान भी हैं। मैं यह भी नहीं कह सकता है कि वे साथ में शानदार ढंग से रह पाएंगे, ऐसे में जो मैं सबसे अच्छा कर सकता हूं वह यह है कि मैं मध्यस्थता कर सकता हूं। आपके पास दो काउंटी हैं जो लंबे समय तक एक साथ नहीं रह सकते हैं और सीधे तौर पर कहूं तो यह काफ़ी विस्फोटक स्थिति है।”
कश्मीर पर ट्रंप की तमाम कोशिशों के बावजूद हकीकत यही है कि अमरीका ना तो इस क्षेत्र की ज़मीनी हक़ीक़त को बदल सकता है और ना कश्मीर को लेकर भारतीय नीति को। बाक़ी का अंतरराष्ट्रीय समुदाय, इस मामले को कैसे देख रहा है, यह फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बयान में देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है, “कश्मीर समस्या का हल भारत और पाकिस्तान के बीच निकलना चाहिए, किसी तीसरे को इसमें दख़ल नहीं देना चाहिए।”
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से ऐसी ही भावना की उम्मीद के साथ जी-7 की बैठक के दौरान मिलेंगे।