मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। इस दिन आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें दिखाई देती हैं। पूरे उत्तर भारत का ही आलम यही होता है। कई जगहों पर तो पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
मैं हूं पतंग ए कागजी, डोर है उसके हाथ में
चाहा इधर घटा दिया, चाहा उधर बढ़ा दिया
नजीर अकबरबादी ने आगरा में ही यह शेर लिखा। वो खुद पतंगबाजी के शौकीन थे। वो क्या उस दौर में आगरा की पतंगबाजी कलकत्ता (कोलकाता) तक मशहूर थी। यमुना किनारे बड़े मुकाबले होते थे पतगंबाजों के बीच। वो काटा का शोर मचता था। यह शोर अब खामोश है। न पहले जैसे पतंगबाज हैं, न ही पतंगबाजी का शौक रहा।
हुसैन गंज के डी. के काइट सेंटर दुकान के मालिक कादिर बताते हैं कि जमघट जैसी दुकानदारी मकरसक्रांति में नही है। जमघट में लखनऊ के कोई छत खाली नही रहता है। सबसे ज्यादा कौन सी पतंग बिकती है पूछने पर बताया कि मझोली साइज की पतंग ज्यादा बिकती है। धागा सद्धि वाला ज्यादा बिकता है। सबसे महंगी पतंग पौना होती है। जो 11 रुपये में मिलती है।
हाजी सुबराती पतंग फरोश दुकान के मालिक ने बताया कि दुकानदारी फीकी है। बताया कि पन्नी वाली पतंग ज्यादा बिकती उन्होने कहा कि 50 से 55 साल पुरानी दुकान है आजतक हम लोगों ने चाइनीज मांझा नही बेचा। उसने कहा कि चाइनीज मांझा चौक या फिर मौलवी गंज में मिल सकता है। उन्होने बताया कि बैंगलुरु, बनारस, नोएडा, गुजरात जैसे शहर में बरेली के कारीगर जाके बनाते हैं। दुकानदार ने बताया कि पुराने लखनऊ में ज्यादा पतंग उड़ाया जाता है।