साईं बाबा को समाधि लिए आज 101 वर्ष पूरे हो चुके हैं। 15 अक्टूबर 1918 को साईं बाबा ने शिरडी में समाधि ली थी। ऐसा कहा जाता है कि साईं महज 16 साल की उम्र में शिरडी आए थे और 1918 तक वो यहीं रहे। जिस दिन साईं ने समाधि ली थी उस दिन दशहरा भी था।
शिरडी वाले साईं बाबा का वास्तविक नाम, जन्मस्थान और जन्म की तारीख किसी को नहीं पता है। हालांकि साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है। साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए और चिर समाधि में लीन होने तक यहीं रहे।
कहते हैं कि दशहरे के कुछ दिन पहले ही सांईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचन्द्र पाटिल को विजयादशमी पर ‘तात्या’ की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई सांईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, सांईं बाबा को ‘मामा’ कहकर संबोधित करते थे, इसी तरह सांईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया।
सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।