SC ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR के बकाया चुकाने में देरी पर टेलीकॉम कंपनियों और सरकार को जमकर फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि उसे जो आदेश देना था दे चुका है और टेलीकॉम कंपनियों को पैसा चुकाना ही होगा। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह अवमानना का मामला है, क्या हमें अब SC को बंद कर देना चाहिए?
यह टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है। शुक्रवार को SC एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR के मसले पर फिर से सुनवाई शुरू हुई। टेलीकॉम कंपनियों ने AGR चुकाने के लिए मोहलत मांगी थी। अंतिम तिथि 23 जनवरी को बीत चुकी है। अदालत ने सरकार और कंपनियों के वरिष्ठ अफसरों को कोर्ट की अवमानना का नोटिस भी दिया है।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने याचिकाओं पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘ये याचिकाएं दाखिल नहीं करनी चाहिए थीं। ये सब बकवास है। क्या सरकारी डेस्क अफसर SC से बढ़कर है जिसने हमारे आदेश पर रोक लगा दी। अभी तक एक पाई भी जमा नहीं की गई है। हम सरकार के डेस्क अफसर और टेलीकॉम कंपनियों पर अवमानना की कार्रवाई करेंगे । क्या हम SC को बंद कर दें ? क्या देश में कोई कानून बचा है? क्या ये मनी पॉवर नहीं है?’
SC ने कड़े शब्दों में कहा कि इस प्रकार की मोहलत मांगने वाली याचिका दाखिल ही नहीं करनी चाहिए थी। ये सब शोर-शराबा कौन कर रहा ?
SC ने कहा-‘ हम इस मामले में बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना चाहते हैं। यह पूरी तरह से बेवकूफी है। जो कहना था हमने कह दिया। आपको पैसा चुकाना ही होगा।’
यह टेलीकॉम कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने याचिकाओं पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘ये याचिकाएं दाखिल नहीं करनी चाहिए थीं । ये सब बकवास है। क्या सरकारी डेस्क अफसर SC से बढ़कर है जिसने हमारे आदेश पर रोक लगा दी। अभी तक एक पाई भी जमा नहीं की गई है। हम सरकार के डेस्क अफसर और टेलीकॉम कंपनियों पर अवमानना की कार्रवाई करेंगे। क्या हम SC को बंद कर दें ? क्या देश में कोई कानून बचा है? क्या ये मनी पॉवर नहीं है?’
SC ने दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ अफसरों को जवाब देने के लिए कहा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए । यही नहीं ऐसे अफसरों और सभी टेलीकॉम कंपनियों के CMD को 17 मार्च को कोर्ट की अवमानना मामले की सुनवाई का सामना करना पड़ेगा। SC ने अवमानना के लिए एयरटेल और वोडफोन आइडिया जैसी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भी दिया है।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘DoT ने ये नोटिफिकेशन कैसे जारी किया कि अभी भुगतान ना करने पर कंपनियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं करेंगे। SC ने नोटिस के ज़रिए कोर्ट ने पूछा है कि क्यों ना उन कंपनियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए।
इस मसले पर देरी पर काफी नाराजगी दिखाते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा-सरकार का टेबल पर बैठा एक अधिकारी हमारे आदेश को रोक देता है। इस देश में कोई कानून बचा है या नहीं ? उस अधिकारी को यहां बुलाएं।’ कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से स्पष्टीकरण देने को कहा कि आखिर सरकार ने SC के आदेश का उल्लंघन करते हुए टेलीकॉम कंपनियों को मोहलत कैसे दी।
भारती एयरटेल, वोडाफोनआइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज ने नई याचिका दाखिल कर SC से यह गुहार लगाई थी कि करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये के AGR बकाया चुकाने के लिए उन्हें और मोहलत दी जाए। जस्टिस अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नजीर और एमआर शाह की पीठ ऐसी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
इसके पहले 16 जनवरी को SC ने AGR चुकाने के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इसके लिए कोई ‘वाजिब वजह’ नहीं दिखती। पिछले साल अक्टूबर में SC ने अपने आदेश में कहा था कि टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर AGR का बकाया दूरसंचार विभाग को देना ही होगा।
इस आदेश के अनुसार एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये औरबीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं।
सरकार द्वारा वसूले जाने वाले एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की वजह से कई टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर पहुंच गई हैं। वोडाफोन आइडिया को दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे ज्यादा 50,921 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ था। तीसरी तिमाही के लिए गुरुवार को जारी परिणाम के अनुसार वाडोफोन को 6,438.8 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। कंपनी का लगातार छठे तिमाही भारी घाटा हुआ है।
इसी तरह एयरटेल को भी 23,045 करोड़ रुपये का बड़ा घाटा हुआ है। आखिर क्या है यह मसला, क्यों इससे तबाह हो रही हैं टेलीकॉम कंपनियां? आइए इसे समझते हैं।
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है। इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है।
दूरसंचार विभाग कहता है कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो। दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए।
साल 2005 में सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने AGR की गणना के सरकारी परिभाषा को चुनौती दी थी, लेकिन तब दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण ने सरकार के रुख को वैध मानते हुए कंपनियों की आय में सभी तरह की प्राप्तियों को शामिल माना था। इसके बाद SC ने भी संचार मंत्रालय के पक्ष में अपना निर्णय दिया।