जानिए पोंगल के शुभ मुहूर्त

त्यौहारों का हमारे देश में विशेष महत्व है। सांस्कृतिक तौर पर लोग अलग-अलग तरीके से पूजा पाठ कर भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं। साथ ही फसल कटाई के बाद भगवान सूर्य की आराधना कर उनकी शक्ति के प्रति निष्ठा प्रकट की जाती है। भारत में जितने पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं, उतने दुनिया के किसी देश में शायद ही मनाये जाते होंगे। त्यौहार का महत्व हमारे जीवन में विशेष इसलिए है क्योंकि समाज का हर शख्स इसमें शामिल होकर खुशियों का संचार करता है। वैसे तो देश में बहुत सारे त्यौहार हैं, जिनका अपना महत्व है। उनके पीछे मान्यताएं, परंपराएं भी हैं। मगर उनमें से एक त्यौहार खास तौर पर पोंगल भी है जिसे भोगी पोंगल, थाई पोंगल, मट्टू पोंगल और कानुम पोंगल भी कहा जाता है।

पोंगल क्यों है विशेष महत्व, कब है शुभ मुहूर्त

पोंगल तमिल भाषा के पोंगा शब्द से लिया गया है जिसका मतलब होता है उबलना। पोंगल के मौके पर नये चावल को बर्तन में पकाकर मनाने की परंपरा है क्योंकि इसे चावल के उबलने को उन्नति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

दक्षिण भारत में फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को कई दिनों तक मनाया जाता है। 2020 में ये त्यौहार 14 जनवरी मंगलवार से शुरू हो रहा है। फसल कटाई की खुशी में इस त्यौहार को चार दिनों तक मनाया जाता है। इसका समापन 17 जनवरी को हो रहा है।

पोंगल भगवान सूर्य को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार सूर्य की किरण फसल में रोशनी का संचार कर खेती को ऊर्जा प्रदान करती है। त्यौहार पर तमिल परिवार आम, केला की पत्तियों और रंग बिरंगी चावल से बनी आकृतियों से अपने घर के दरवाजे को संजोते हैं। इस दिन पकवान को पारंपरिक रूप से केला की पत्तियों में परोसा जाता है।

पोंगल को 4 दिनों तक बहुत ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, पोंगल के पहले दिन को भगवान इंद्र के सम्मान में मनाया जाता है। भगवान इंद्र को वर्षा का भगवान कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों के कबाड़ को आग के हवाले कर देते हैं। दूसरे दिन चावल को दूध में मिट्टी के बर्तन में घर के बाहर उबाला जाता है। साथ ही सूर्य की पूजा कर उसके प्रति आभार प्रकट किया जाता है। अनुष्ठान के बर्तन को धार्मिक कामों में इस्तेमाल कर पति पत्नी फोड़ देते हैं। हल्दी का पौधा बर्तन के साथ बांधकर चावल उबालने के काम लिया जाता है।

पोंगल के तीसरे दिन को गाय के दिन के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन गायों को सजा धजाकर उनकी पूजा की जाती है। गायों को खिलाकर गांवों में ले जाया जाता है। जहां अन्य पशुओं के साथ मुकाबला आयोजित किया जाता है।

पोंगल के चौथे और अंतिम दिन को कन्नूम पोंगल कहा जाता है। हल्दी की पत्ती को अच्छी तरह धोकर जमीन पर रख दिया जाता है। नहाने से पहले घर की औरतें पत्ती पर गन्ना, रंगीन चावल, साधारण चावल इत्यादी रख देती हैं। घर की सभी औरतें आंगन में खड़ी हो जाती हैं। पत्ती के बीच में चावल रखकर भाइयों की उन्नति की कामना की जाती है।

इस साल थाई पोंगल का शुभ मुहूर्त 15 जनवरी रात्रि 2 बजकर 22 मिनट पर है।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1