तीन साल पहले पूरी रात करता रहा फोन बजने का इंतजार, वीर जवानों ने लिख डाली वीरगाथा- PM MODI

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।

अमेरिका की धरती से समूचे विश्व को पाकिस्तान का असली चेहरा दिखने और अपने सफलतम दौरे के बाद शनिवार देर शाम स्वदेश पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पालम एयरपोर्ट पर हजारों लोगों ने जोरदार स्वागत किया। लोगों का अभिनंदन स्वीकार करते हुए पीएम ने कहा कि भारत की स्वीकृति विदेश में बढ़ी है। इसके लिए मैं 130 करोड़ देशवासियों को धन्यवाद देता हूं। उन्होंने कहा कि 2014 में भी मैं अमेरिका गया था और 2019 में भी गया। फर्क साफ नजर आया। दुनिया की नजरों में भारत के प्रति सम्मान व आदर बढ़ा है। इसका एक प्रमुख कारण आप लोग हैं, जिन्होंने दूसरी बार भाजपा को सत्ता में लाने के लिए वोट दिया।

प्रधान मंत्री मोदी ने उरी मे की गयी पाकिस्तान की कायराना हरकत के बाद भारतीय सेना द्वारा POK में की गयी जवाबी करवाई, मतलब सर्जिकल स्ट्राइक को याद किया और कहा की ठीक तीन वर्ष पहले 28 सितंबर को मैं पूरी रात सोया नहीं था। हर पल इसी का इंतजार रहता था कि टेलीफोन की घंटी कब बजेगी। इसी दिन हमारे वीर जवानों ने स्वर्णिम गाथा लिखी थी और POK में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देकर भारत की आन-बान और शान को बढ़ाया था। मैं उन वीर जवानों को प्रणाम करता हूं। उन्होने कहा की आज ही के दिन हमने अपने पडोसी को यह बताया की यह नया हिंदुस्तान है जो अब बिलकुल बर्दाश्त करने के मूड मे नहीं है, संयुक्त राष्ट्र में भी उन्होने पाकिस्तान को हद मे रहने की हिदायत दी।

पाकिस्तान लगातार अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है, जिस समय हम यह लेख लिख रहे हैं या आप इससे जब पढ़ रहे होंगे तब भी हमारा पडोसी मुल्क अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने की फ़िराक मे होगा, लेकिन छुप कर वार करना और आम जनता को दुःख पहुँचाना यह सब सिर्फ पाकिस्तान जैसा आतंक को पोषण देने वाला राष्ट्र ही कर सकता है. वक़्त बदल चूका है, अब हम और हमारी सेना चुप बैठने वालों मे से नहीं है। युद्ध की धमकी और परमाणु आक्रमण की गीदड़भभकी आये दिन पाकिस्तान की तरफ से आम हो गयी है, इस सभी घटनाक्रम पर हमे कुछ पंक्तियाँ याद आती है, जो की आज पाकिस्तान को जरूर पढ़नी और समझनी चाहिए:-

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा, पर नर व्याघ सुयोधन तुमसे कहो कहाँ कब हारा?

क्षमाशील हो ॠपु-समक्ष तुम हुये विनीत जितना ही, दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही

अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है, पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है, उसका क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल है

तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिंधु किनारे, बैठे पढते रहे छन्द अनुनय के प्यारे प्यारे

उत्तर में जब एक नाद भी उठा नही सागर से, उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से

सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में, चरण पूज दासता गृहण की बंधा मूढ़ बन्धन में

सच पूछो तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की, संधिवचन सम्पूज्य उसीका जिसमे शक्ति विजय की

सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है, बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है

-रामधारी सिंह “दिनकर”

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