पितरों को मोक्ष दिलाने, आएं पितृपक्ष में गया

अपने पूर्वजों को श्रद्धा भाव से तर्पण करने का पक्ष होता है पितृपक्ष। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर देवता पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हैं। इन दिनों में गया, हरिद्वार, उज्जैन, इलाहाबाद जैसे धार्मिक स्थलों पर पिंडदान किया जाता है। इन धार्मिक स्थलों पर तर्पण करने से पितृ को तृप्ति प्राप्त होती है। श्राद्ध वो कर्म है, जिससे पितरों को तृप्त करने के लिए भोजन परोसा जाता है। पिंडदान और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर परिवार के व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।

गरुड़ पुराण में इस बात का वर्णन है कि पितर लोक को गई आत्म पितृ पक्ष में जब लौटकर आती है तो वह अपने परिवार द्वारा दिए गए पिंड, अन्न और जल को ग्रहण करके तृप्त होती है। इसी से पितरों की आत्मा को शांति मिलती हैं और बलवान होकर वो अपने परिवार जनों का कल्याण कर पाते हैं। जिन्हें पितरों को अन्न जल प्राप्त नहीं होता वह भूख, प्यास से परेशान होकर अमावस्या के दिन लौट जाते हैं। पितरों का निराश होकर लौटना परिवार में निराशा और कष्ट को बढ़ता है।

अकाल मृत्यु के लिए गज छाया योग में किया जाता है श्राद्ध

गज छाया योग में श्राद्ध करना हैं बेहद शुभ

पितृपक्ष इस वर्ष 14 सितंबर से आरंभ हो रहा है। साथ ही गज छाया योग इस बार 27 अगस्त को बन रहा है इस दिन जिन लोगों की मृत्यु तिथि का पता नहीं या जिनकी अकाल मृत्यु हुई है, उनका श्राद्ध करना शुभ माना गया है।

जीवित पुत्रिका व्रत, अष्टमी का श्राद्ध।

जिवित पुत्रिका व्रत से होती है वंश वृद्धि

पितृ पक्ष में जिवित पुत्रिका व्रत रखने से श्राद्ध में वंश वृद्धि होती है, इस वर्ष ये तिथि 22 सितंबर को पड़ रही है।

इस वर्ष पितृ पक्ष में 25 सितंबर को एकादशी की तिथि है जिसे इंदिर एकादशी भी कहते हैं। द्वादशी तिथि का क्षय होने की वजह से एकादशी और द्वादशी तिथि में जिनकी मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध एक ही दिन किया जाएगा। पितृपक्ष की एकादशी में ब्राह्ण भोजन और व्रत रखकर इसका पुण्य पितरों को दिया जाए तो किन्हीं कारण से नरक में गए पितर भी पाप मुक्त होकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं।

पितृ पक्ष में बेहद महत्वपूर्ण है शनि अमवस्या

शनि अमवस्या का क्या है महत्व

इस साल पितृपक्ष में 26 सितंबर को शनि अमावस्या का संयोग बन रहा है, कठोपनिषद्, गरुड़ पुराण और मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि श्राद्ध पक्ष में अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है, यानी अगर पितृ पक्ष में कोई अपने पितर का श्राद्ध नहीं कर पिया है तो इस दिन वो श्राद्ध का कार्य पूर्ण कर सकता है। मान्यता है कि इस दिन पितर गण संध्या के समय अपने परिवार के लोगों के बीच से वापस अपने लोक की ओर विदा हो जाते हैं।

किन को परोसे श्राद्ध का भोजन

पितरों के नाम से किन 5 को परोसे भोजन

पितरों के नाम से श्राद्ध करने के बाद पूर्वजों को याद करके ब्राह्मणों को भोजन परोसना चाहिए, इसके बाद पितरों के लिए बने भोजन को गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को भी देना चाहिए। इससे पितर जहां जिस रूप में होते हैं उन्हें उनका अंश मिल जाता है।

वायु पुराण में वर्णित है गयासुर की कहानी-
वायु पुराण में वर्णित है कि गयासुर ने अपनी तपस्या से इतनी सिद्धि पाप्त कर ली थी कि उसके स्पर्श मात्र से लोग स्वर्ग लोक चले जाते थे। इस घटना से यमराज और अन्य देवताओं की चिंता बेहद बढ़ गयी। देवगण इससे त्राण पाने के लिए भगवान विष्णु की आराधना की। भगवान विष्णु ने सीधे स्वर्ग लोक भेजने तथा अन्य लालच देकर गयासुर का प्राणोत्सर्ग करने के लिए राजी कर लिया। गयासुर को उत्तर को ओर सिर तथा दक्षिणी को ओर पैर करके लिटाया गया।

ब्रह्माजी ने गयासुर पर धर्मशिला और सभी देवी-देवता उस पर खड़े हुए तब जाकर गयासुर की बलि हो सकी । अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार भगवान विष्णु ने गयासुर राक्षस को प्रतिदिन एक पिंड और एक मुंड देने का वरदान दिया था। यह स्थान संसार में पवित्रतम होगा, देवताओं के लिए यह विश्रामस्थल होगा। यह स्थान ‘गयाधाम’ के नाम से जाना जाएगा। जो भी यहां पिंडदान करेगा अपने पूर्वजों सहित ब्रह्मलोक चला जाएगा। यही कारण है कि सनातन काल से गयाजी मोक्षस्थली के रूप में जाना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार राम,सीता, पितामह, रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु सहित कई ख्यातिलब्ध राजा, महाराजाओं ने यहां आकर पिंडदान किया था। वैसे तो यहां सालों भर पिंडदान करने का महत्व है लेकिन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष का पखवारा अति महत्वपूर्ण है। शास्त्रों की मान्यता है कि इस अवधि में समस्त पितर यहां निवास करते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष में लाखों की संख्या में पिंडदान करने लोग आते हैं।

सभी तीर्थों में श्रेष्ठ गया तीर्थ-
पिंडदान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य नवीनचंद्र मिश्र ‘याज्ञिक’ कहते हैं कि समस्त तीर्थों में गया तीर्थ श्रेष्ठ है। यहां का पितृपक्ष अति विशिष्ट स्थान रखता है। शंख स्मृति के चौदहवें अध्याय के अनुसार गयाधाम में जो कुछ भी पितरों को अर्पित किया जाता है उससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। वाल्मिकी रामायण में भी गयातीर्थ की महत्ता को बताया गया है। वायपुराण में भी गया श्राद्ध की चर्चा है।

प्रतिनिधि के पिंडदान से भी प्रसन्न होते हैं पितर-
देश या विदेश के किसी कोने से किसी भी कारणवश जो व्यक्ति गयाश्राद्ध को नहीं आ सकते हैं वे भी अपने पूर्वजों के लिए घर में ही श्राद्धकर्म कर सकते हैं। गयाधाम में तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण व गाय को भोजन कराने व दान के बाद ही पितरों को देवलोक की प्राप्ति होती है। लेकिन यहां न आने की स्थिति में घर पर तर्पण करने के बाद ब्राह्मण भोजन और दान के बाद पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन पितरों को देवलोक की प्राप्ति कराने के लिए पंचकोस गया की भूमि पर पिंड देना ही होगा। ऐसी स्थिति में पुत्र का कोई भी प्रतिनिधि पितरों के नाम  पिंडदान करता है तो पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलने के साथ-साथ उन्हें देवलोक की प्राप्ति होती है।  

वायपुराण में यह वर्णित है कि ‘अपना पुत्र हो या किसी दूसरे का, गया पंचकोस में कहीं भी भूमि पर जिसके नाम से पिंडदान किया जाता है उसे शाश्वत ब्रह्म की प्राप्ति होती है। विदेशी या देश के किसी भी कोने से किसी भी जरिए गया में रह रहे लोगों को प्रतिनिधि बनाकर अपने पितरों के श्राद्धकर्म करवा सकते हैं। इसका भी फल गया आकर पुत्र द्वारा किए गए कर्मकांड जैसा ही मिलता है।

देश-विदेश से आते हैं तीर्थयात्री-
आश्विन माह के कृष्णपक्ष के पितृपक्ष पखवारे में विष्णुनगरी में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लिए देश ही विदेशों से भी सनातन धर्मावलंबी आते हैं। गयापाल और श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक ने कहा कि सबसे ज्यादा बंगाल, राजस्थान,गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, यूपी, पंजाब, हरियाणा के अलावा दक्षिण भारत के तामिलनाडु, केरल, ओडिशा, चेन्नई से सबसे ज्यादा तीर्थयात्री पिंडदान करने गयाधाम आते हैं। इसके अलावा सूबे के अन्य राज्यों से पिंडदानी आत हैं। देश के अलावा नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत, भूटान आदि देशों के हिन्दू धर्मावलंबी कर्मकांड को गयाजी आते हैं। कई बार अमेरिकी और यूरोपीय देशों में बसे हिन्दू धर्मावलंबी भी गयाश्राद्ध को आते हैं।

दो तरह से ज्यादा करते हैं पिंडदान-
लेकिन आश्विन माह के पितृपक्ष में अधिकतर तीर्थयात्री दो तरह से पिंडदान करते हैं। पहली में फल्गु नदी, विष्णुपद और अक्षयवट में पिंडदान कर कर्मकांड को संपन्न करते हैं और दूसरी त्रिपाक्षिक श्राद्ध के तहत कर्मकांडी पुनपुन के बाद गया पंचकोस के विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंडदान करते हैं। पिंडदानी फल्गु नदी सहित कई सरोवरों में तर्पण करते हैं। पिंडदान की अंतिम कड़ी में अक्षयवट में कर्मकांडी अपने पंडों से सुफल लेते हैं।  

पुनपुन व गोदावरी से शुरू होता है पिंडदान-
पटना और औरंगाबाद जिले में पुनपुन नदी के घाट से स्नान और तर्पण से कर्मकांड शुरू करते हैं। इसके बाद भाद्रपद्र पूर्णिमा से गया पंचकोस की वेदियों पर पिंडदान शुरू करते हैं। अंत में अक्षयवट वेदी पर गयावाल पंडों से सुफल लेने के बाद गयाश्राद्ध संपन्न करते हैं। एक, तीन, पांच और सात दिन पिंडदान करने वाले तीर्थयात्री फल्गु से कर्मकांड शुरू कर अक्षयवट से सुफल लेकर कर्मकांड समाप्त करते हैं।

जौ का आटा और काला तिल से बनते हैं पिंड-
वैसे तो अलग-अगले वेदियों पर अलग-अलग सामग्री से पिंड बनाकर कर्मकांड करने का विधान हैं। लेकिन, ज्यादातर पिंडदानी जौ का आटा, काला तिल, खोवा से बने पिंड से पिंडदान करते हैं। प्रेतशिला वेदी पर सत्तू उड़ाने का विधान है।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1