आये दिन लम्बे लम्बे चालान की खबरें देश के हर कोने से आ रही हैं। सरकार का तर्क भी वजिब है की अर्थ दंड ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जिससे समाज मे अनुशाषण लाया जा सकता है, और इसमे कोई दो राय नहीं है की, चालान की कीमतों मे आयी बढ़ोतरी ने काफी हद तक सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं में कमी ला दी है। लेकिन क्या अनुशाषण की कीमत भी जनता ही चुकाए? यह वही अनुशाषणहिन् जनता है जिसने सरकार को चुना है।
देश के लगभग हर कोने से चालान की मोटी रकम वसूली जाने की खबरें आ रही हैं। खबरें तब भयानक लगती हैं जब आम जनता की पुलिस से हाथापाई, या अपने ही वाहन को आग लगा देने जैसी खबरें आती हैं। साहब ऐसे तो पुलिस और पब्लिक के बींच का ही अनुशाषण भंग हो जायेगा। यह हमारी व्यक्तिगत राय है की शायद कुछ और नीतिगत फैसले लिए जाने की जरुरत थी तब आपका यह फैसला गले उतर पाता, अभी तो यह गले की फांस बन गया है।
अब एक सवाल सरकार से भी है, क्या इस तरह से चालान की कीमतों को बढ़ा देने से आधारभौत सुविधाएं ठीक हो जाएँगी, क्या सड़कें गद्दाविहीन हो जाएँगी, क्या असमय जाम लगने की समस्या का समाधान हो जायेगा, ऐसे कई सवाल हैं, जिनका अभी उत्तर मिलना बाकी है।
हालाँकि NVR24 सरकार की इस पहल का स्वागत करता है, लेकिन आशा भी करता है की और भी समस्याओं का समाधान इसी तरह अर्थदंड या दंड की पृथक प्रक्रियाओं से निराकरण करें।