तीन साल से अपने को जिंदा दिखाने के लिए अधिकारियों से गुहार लगा रहा बुजुर्ग

कानपुर – चला मुस्सद्दी… ऑफिस ऑफिस फिल्म में तो आपने देखा होगा कि किस प्रकार एक सेवानिवृत्त अध्यापक अपनी पेंशन के लिए बाबुओं के सामने अपने को जिंदा साबित करने में क्या-क्या करता है, लेकिन कानपुर में एक बुजुर्ग की तस्वीर कुछ अलग है। इस बुजुर्ग के पास न तो अधिक बौद्धिक क्षमता है और न ही उसका कोई शिष्य जिलाधिकारी। इसके पास अपने को जिंदा साबित करने व वृद्धा पेंशन बनवाने के लिए एक ही विकल्प है कि जिम्मेदारों से गुहार लगाये और कर भी रहा है, पर तीन सालों से कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बुजुर्ग बार-बार कहता है कि साहब मैं जिंदा हूं, मतदान करता हूं और भोजन भी करता हूं, अगर आप दस्तावेज में जिंदा कर दो तो मुझे पेंशन मिलने लगे।

उत्तर प्रदेश कानपुर जनपद में एक बुजुर्ग तीन साल से अपने को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के चौखट पर दस्तक दे रहा है, पर उसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बुजुर्ग का बार-बार कहना है कि साहब चुनाव के दौरान मतदान करता हॅूं, अभी पिछले लोकसभा चुनाव में भी मोदी जी को वोट दिया और रोजाना भोजन भी करता हॅूं, अगर आप लोग दस्तावेज में जिंदा दिखा दे तो गुजर बसर करने के लिए पेंशन मिलने लगे। लेकिन बुजुर्ग की फरियाद को कोई सुनने को तैयार नहीं है और जिंदा होते ही भी वह दस्तावेजों में मृत घोषित है।  

कानपुर के भीतरगांव ब्लॉक के ग्राम सिकहुला के रहने वाले 90 वर्षीय तुलसी पिछले तीन सालों से खुद को जिंदा दिखाने के लिए अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, क्योंकि बुजुर्ग को मृत बता दिया गया है। एक बात तो है उत्तर प्रदेश की सरकार भले ही बुजुर्गों को गुजर-बसर के लिए पेंशन देने की दावे करती हो, मगर कुछ अधिकारी सरकार की इस मदद का बंदरबांट करने के लिए इतनी गिरी हुई हरकत कर सकते हैं आप सोच भी नहीं सकते।

दरअसल चंद पैसां के लिए जिंदा लोगों को ही मृत करार कर दिया जाता हैं। इसी के चलते तीन साल से कागजों में बुजुर्ग को मुर्दा दिखाया गया। बुजुर्ग वृद्धावस्था पेंशन के लिये अपने को जीवित साबित करने के लिए नाती के साथ अधिकारियों के यहां चक्कर लगा रहा है। इसके साथ ही मुख्य विकास अधिकारी से भी प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार लगा चुका है। बुजुर्ग का आरोप है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई बुजुर्गों को मृतक दिखा कर उनकी पेंशनों की बंदरबांट कर दी जाती है। बताया कि मैं चलने फिरने मे असहाय हूं और अपने भतीजे व नाती के साथ अधिकारियों को अपने जीवित होने का प्रमाण देने के लिए अक्सर सरकारी कार्यालय जाता हूं, मगर अधिकारी हैं कि सुनने का नाम नहीं ले रहे हैं।

2017 तक मिली पेंशन

बुजुर्ग का कहना है कि वृद्धा अवस्था पेंशन का आवेदन किया था, 2017 तक उन्हे पेंशन भी मिली, लेकिन दिसंबर 2017 के बाद से आज तक उनकी पेंशन नहीं आ रही है। बताया कि घर के आर्थिक हालात भी अच्छे नहीं हैं, पेंशन से ही उनको सहारा रहता है।

अधिकारी बना रहे दबाव

परिवार का आरोप है कि अब अधिकारी जब मामले मे फंसते हुए नजर आ रहे हैं तो वे परिवार के लोगों पर दबाव बना रहे है कि वह पुरानी पेंशन को भूल जाएं और उनकी नई पेंशन शुरु करा दी जाएगी। मगर परिवार के लोगों का कहना है कि उन्हे पूरी पेंशन चाहिए जो पिछले सालों से नहीं मिली है। विभागीय कर्मचारी मामले को दबाने मे जुट गए हैं औऱ कह रहे हैं कि अगर पेंशन चाहिए तो नया आवेदन करो पुराने मामले की फाइले लखनऊ जाती हैं। बड़ा सवाल यें उठता हैं की योगी जी के राज्य में ऐसे लापरवाह अफसरों पर क्या कार्यवाई होती हैं अपने आप में यें एक बड़ा सवाल है। इस पर मुख्य विकास अधिकारी सुनील कुमार सिंह का कहना है कि मामला संज्ञान में नहीं है, दिखवाया जाएगा और जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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