‘कर्मा’ पूजा पर्व आदिवासी समाज का प्रचलित लोक पर्व है । यह पर्व हिन्दू पंचांग के भादों मास की एकादशी को झारखण्ड, छत्तीसगढ़, सहित देश विदेश में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर श्रद्धालु उपवास के पश्चात करमवृक्ष को या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते है और दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न देकर ही उसका उपभोग शुरू होता है। ये नवान्न नौ दिन पहले पूजा के लिए टोकरियों में बोये गए जावा फूल (विभिन्न अनाजों) के बीज जब अंकुरित हो जाते हैं, और सुनहरे चमकदार रंगों में लहलहा रहे हैं, तब इनकी पूजा की जाती है।
कर्मा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच गा कर मनाते हैं। कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ और झारखण्ड की लोक-संस्कृति का पर्याय भी है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी सभी इसे लोक मांगलिक नृत्य मानते हैं। कर्मा पूजा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच सुदूर गावों में विशेष प्रचलित है। शहडोल, मंडला के गोंड और बैगा एवं बालाघाट और सिवनी के कोरकू तथा परधान जातियाँ कर्मा के ही कई रूपों को आधार बना कर नाचती हैं। बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा और भुंइयाँ कर्मा आदि वासीय नृत्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य में ‘करमसेनी देवी’ का अवतार गोंड के घर में हुआ ऐसा माना गया है, एक अन्य गीत में घसिया के घर में माना गया है।
कर्मा पूजा में रखे गये उपवास का बेहद महत्व होता है। कर्मा की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर एक विशेष गीत भी गाये जाते हैं… आए गेलैं भादो, आंगना में कादो भाई रीझ लागे… झुमइर खेले में आगे बाई रीझ लागे…