कालापानी पर नेपाल ने किया दावा, भारत ने कहा- इलाका हमारा

नेपाल कालापानी बॉर्डर के मुद्दे पर भारत से बात करने का इक्षुक है। ऐसे में भारत सरकार ने गुरुवार को जोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद जारी किए गए भारत के नए राजनीतिक नक्शे में सीमाओं का सही चित्रण किया गया है। हालांकि, सरकार ने यह भी कहा कि परिसीमन प्रक्रिया अभी जारी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ‘हमारा नक्शा भारत के संप्रभु क्षेत्र को सही तरह से चित्रित करता है। नए नक्शे में नेपाल के साथ लगी हमारी सीमा में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है।’

विदेश मंत्रालय का यह बयान तब आया है जब नेपाली मीडिया में खबरें आईं कि संभवतः 15 जनवरी को इस मुद्दे पर दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच बातचीत होगी। रिश्तों में दरार पड़ने से रोकने के लिए कालापानी मुद्दे को सुलझाना जरूरी है।

वहीं, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिनों के अंदर देश के दो वास्तविक नक्शे उपलब्ध कराने को कहा है। एक नक्शा 1816 में सुगौली समझौते के वक्त और दूसरा नक्शा 1960 में सीमा संधि पर दस्तखत के वक्त भारत के साथ आदान-प्रदान हुआ था। दरअसल, एक वरिष्ठ वकील की ओर से दायर एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि वह नेपाल सरकार को नेपाली भूभाग के संरक्षण के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास शुरू करने का आदेश दे। इसी याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल सरकार से 1816 का नक्शा मांग लिया। दरअसल, ईस्ट-इंडिया कंपनी ने 1 फरवरी, 1827 को एक नक्शा प्रकाशित किया था। बाद में ब्रिटिश सरकार ने भी 1847 में एक अलग नक्शा प्रकाशित किया था।

कालापानी चीन, नेपाल और भारत की सीमा जहां मिलती है वह 372 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। भारत इसे उत्तराखंड का हिस्सा मानता है जबकि नेपाल इसे अपने नक्शे में दर्शाता है।

नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच सुगौली समझौता साल 1816 में हुआ था। इसमें कालापानी इलाके से होकर बहने वाली महाकाली नदी भारत-नेपाल की सीमा मानी गई है। हालांकि, सर्वे करने वाले ब्रिटिश ऑफिसर ने बाद में नदी का उद्गम स्थल भी चिह्नित कर दिया था जिसमें कई स्थलों पर सहायक नदियां भी मिलती हैं। नेपाल का दावा है कि विवादित क्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र से गुजरने वाली जलधारा ही वास्तविक नदी है, इसलिए कालापानी नेपाल के इलाके में आता है। वहीं, भारत नदी का अलग उद्गम स्थल बताते हुए इस पर अपना दावा करता है।

कालापानी इलाके का लिपुलेख दर्रा चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। 1962 से ही कालापानी पर भारत की इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस की पहरेदारी है।

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