नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देशभर के ज्यादातर राज्यों में ज़ोरदार प्रदर्शन चल रहा है। जिसके मद्देनजर ही केंद्र सरकार ने दिल्ली, बंगलुरु के साथ कई राज्यों में इंटरनेट सेवा को अस्थाई रूप से बंद कर दिया है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट की मानें तो भारत इंटरनेट बंद करने के मामले में अन्य सभी देशों से सबसे आगे है। लेकिन आम जाता को नहीं पता है कि भारत सरकार इंटरनेट को कैसे बंद करती है। आज हम आपको बताएंगे कि केंद्र सरकार इंटरनेट पर बैन लगाने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाती है। हम आपको ये भी बतायेगे कि देश के किस राज्य में कितनी बार इंटरनेट पर रोक लगी है।
ये है इन्टरनेट बेन करने की प्रक्रिया
केंद्र या राज्य के गृह सचिव इंटरनेट बैन करने का फ़रमान जारी करते हैं। इंटरनेट बंद करने के ऑर्डर को SP या उससे भी ऊपर के रैंक वाले अधिकारी के माध्यम से भेजा जाता है। इसके बाद अधिकारी टेलीकॉम कंपनी को उस राज्य में इंटरनेट सेवा बंद करने के लिए कहता है।
इस ऑर्डर को अगले वर्किंग डे में सरकार के रिव्यू पैनल के पास पंहुचा दिया जाता है । यहां रिव्यू पैनल पांच दिन तक ऑर्डर का रिव्यू करता है। इस रिव्यू पैनल में कैबिनेट सेक्रेटरी, और टेलीकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी शामिल होते हैं। वहीँ दूसरी ओर राज्य सरकार की तरफ से दिए गए ऑर्डर के रिव्यू में चीफ सेक्रेटरी और लॉ सेक्रेटरी मौजूद होते हैं। सहमति मिलने के बाद इंटरनेट को बंद कर दिया जाता है।
धारा 144 के दौरान जॉइंट सेक्रेटरी इंटरनेट पर बैन लगा सकते हैं
आपको बता दें कि केंद्र और राज्य के गृह सचिव की ओर से चुने गए जॉइंट सेक्रेटरी धारा 144 के दौरान इंटरनेट को बंद करने का का आदेश दे सकते हैं। इस फैसले के लिए जॉइंट सेक्रेटरी को 24 घंटे के अंदर गृह सचिव से सहमति लेनी जरुरी होती है।
कश्मीर में लंबे अरसे तक बंद रहा इंटरनेट
एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 2012 से लेकर 2019 तक अभी तक कुल 374 बार इंटरनेट बंद हुआ है। जहाँ कश्मीर में 180 बार, राजस्थान में 65, उत्तर प्रदेश में 25, बिहार में 10 और उत्तराखंड में 2 बार इंटरनेट सेवा पर रोक लगायी गयी है।