हनुमान जयंती का इंतजार हनुमान भक्त वर्षभर करते हैं। हनुमान जी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ दिन माना गया है। इस दिन विधि पूर्वक हनुमान जी की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जीवन में चल रहे संकट दूर होते हैं। रोग और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
जीवन में जब बहुत कठिन समय आ जाए तो हनुमान जी के इस रूप की पूजा करनी चाहिए। ऐसा विद्वानों का मानना है। धन संबंधी जब बड़ी समस्या आ जाए तो पंचमुखी हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। घर में भी पंचमुखी हनुमान जी की फोटो लगाने से नकारात्मकता का नाश होता है संकटों से बचने के लिए प्रति दिन पंचमुखी हनुमान जी के दर्शन करने चाहिए।
हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली इत्यादि नामों से भी जानते हैं। मरुत शब्द से ही मारुति शब्द की उत्पत्ति हुई है। महाभारत में हनुमानजी का उल्लेख मारुतात्मजके नाम से किया गया है। हनुमानजी का अन्य एक नाम है, बजरंगबली। बजरंगबली यह शब्द व्रजांगबली के अपभ्रंश से बना है। जिनमें वज्र के समान कठोर अस्त्र का सामना करने की शक्ति है, वे व्रजांगबली है। जिस प्रकार लक्ष्मण से लखन, कृष्ण से किशन ऐसे सरल नाम लोगों ने अपभ्रंश कर उपयोग में लाए, उसी प्रकार व्रजांगबली का अपभ्रंश बजरंगबली हो गया।
अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ होता है ‘अंजना द्वारा उत्पन्न’। माता अंजनी और कपिराज श्री केसरी हनुमानजी को अतिशय प्रेम करते थे। हनुमानजी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे। इसी दौरान उनकी नजर क्षितिज पर पड़ी। सूर्योदय हो रहा था। बाल हनुमान को लगा की यह कोई लाल फल है। (तेज और पराक्रम के लिए कोई अवस्था नहीं होती)। यहां पर तो हनुमान जी के रुप में माताश्री अंजनी के गर्भ से प्रत्यक्ष शिवशंकर अपने ग्यारहवें रुद्र में लीला कर रहे थे और पवनदेव ने उनके उड़ने की शक्ति भी प्रदान की थी। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे।
राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार की कोई भी प्राणी साँस न ले सकी और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें सचेत किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की।