कोरोना वायरस (Coronavirus) का बढ़ता संक्रमण पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना वायरस की सेकेंड वेव (Second Wave) को लेकर लोगों को सावधान कर रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसकी सेकेंड वेव ज्यादा खतरनाक होगी। भारत में भी कोरोना (Coronavirus in India) अभी चरम पर नहीं पहुंचा है। फिर भी संक्रमण तेजी से फैल रहा है। इस बीच बड़ी संख्या में लोग ठीक होकर घर लौट रहे हैं। वहीं, दुनियाभर में कोरोना की वैक्सीन (Corona Vaccine) तैयार करने को लेकर लगातार सकारात्मक प्रगति हो रही है। अलग-अलग वैक्सीन पर चल रहे परीक्षणों (Trials) के अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं। अब दवा कंपनी फाइजर (Pfizer) और बायोटेक फर्म बायोएनटेक (BioNTech) की बनाई प्रायोगिक COVID-19 वैक्सीन का पहला क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है।
फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन स्वस्थ कोरोना रोगियों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ा रही है। वैक्सीन के पहले क्लीनिकल ट्रायल का डाटा बुधवार को medRXiv में प्रकाशित किया गया। ये वैक्सीन स्वस्थ रोगियों में इम्युनिटी बढ़ाने के साथ ही ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने पर बुखार और कुछ दूसरे दुष्प्रभावों का भी कारण बन रही है। फाइजर की रिसर्च लैब में वायरल वैक्सीन के चीफ साइंटफिक ऑफिसर फिलिप डॉर्मिटजर ने कहा कि हम दूसरे रोगियों पर भी वैक्सीन का परीक्षण कर रहे हैं। अभी हम सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि वैक्सीन परीक्षण के शुरुआती दौर में बढ़ी इम्युनिटी और सेफ्टी डाटा के आधार पर ये प्रभावी व कारगर वैक्सीन साबित होगी।
क्लीनिक ट्रायल में शामिल किए 45 मरीजों को वैक्सीन की अलग-अलग तीन डोज दी गईं। वहीं, कुछ मरीजों को प्लसीबो दिया गया। रोगियों में 12 को वैक्सीन 10 माइक्रोग्राम, 12 को 30 माइक्रोग्राम, 12 को 100 माइक्रोग्राम डोज दी गई। वहीं, 9 पेशेंट को प्लसीबो दिया गया। इनमें उन मरीजों को बुखार की शिकायत सामने आई, जिन्हें 100 माइक्रोग्राम डोज दी गई थी। इस स्तर पर उन्हें वैक्सीन की दूसरी डोज नहीं दी गई. इसके तीन हफ्ते बाद उन्हें दूसरी डोज दी गई। इसके बाद 10 माइक्रोग्राम डोज वाले 8.3% और 30 माइक्रोग्राम वाले 75% रोगियों को बुखार की शिकायत होने लगी।
परीक्षण में शामिल किए गए 50% से ज्यादा रोगियों में बुखार और नींद उचटने (Sleep Disturbances) की शिकायत सामने आई है। हालांकि, इनमें से कोई भी दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट गंभीर प्रकृति का नहीं था। आसान शब्दों में समझें तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी। इसके अलावा ना तो उनमें किसी तरह की डिसेबिलिटी सामने आई और ना ही उनके जीवन को खतरा पैदा हुआ। कुल मिलाकर वैक्सीन का पहला क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है।