देशभर के प्रमुख शहरों में छठ पूजा की धूम, अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

प्रकृति पूजा और सुख सौभाग्य का पर्व छठ पूजा आज शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ आस्था के चरम पर पहुंचेगा। इसके लिए कल शाम से व्रत शुरू कर चुके भक्त आज शनिवार को पूरे हर्षोल्लास के साथ अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूर्य) को अर्घ्य दिया। इससे पहले छठी मइया के पूजा के लिए आज दोपहर बाद तक छठ घाटों को अंतिम रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। वाराणसी, गोरखपुर, पटना, रांची, जमशेदपुर, दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद समेत के अलावा बिहार सभी जिलों में छठ पूजा का पर्व अपने चरम पर है। कई जगहों पर घाट तैयार करने को लेकर लोगों में नोकझोंक भी देखने को मिलीं। छठ पूजा के लिए कई दिन से तैयारियां चल रही थीं। परदेश में रहने वाले महीनों पहले छठ की छुट्टी लेकर अपने शहर पहुंचे हैं। बहुत से लोगों को छठ पूजा की खुशी में ट्रेन की भीषण भीड़ और सीट न मिलने के बावजूद यात्रा करने में भी कोई गुरेज नहीं रहा। लोग खुशी-खुशी अपनों के पास पहुंच कर छठ पूजा मना रहे हैं।

षष्ठी को सूर्यास्त और सूर्योदय का समय-
02 नवंबर: दिन शनिवार- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य। सूर्योदय: सुबह 06:33 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे। (षष्ठी)
03 नवंबर: दिन रविवार- चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य, पारण का दिन। सूर्योदय: सुबह 06:34 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।

अर्घ्य देने की विधि-
सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करें। इसमें दूध और गंगा जल मिश्रित करके पूजा के पश्चात सूर्य देव को अर्घ्य दें।

सूर्य को अर्घ्य देने का मंत्र-
सूर्य को अर्घ्य देते समय ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा मंत्र का जाप करें।

छठ पूजा का सबसे प्रमुख प्रसाद ठेकुआ माना जाता है जिसे चावल के आटे और मेवे से तैयार किया जाता है। शाम के अर्घ्य से पहले सभी ने अपने घरों में ठेकुआ का प्रसाद ,पकवान तैयार कर लिया होगा। जिससे घाट पर पूरी तैयारी के साथ पहुंचा जा सके।

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आज यानी छठी मइया को अर्घ्य देने के दिन सभी लोए नए कपड़े पहनकर, छठ का प्रसाद तैयार करने के बाद अपने घरों से छबुआ (डलिया) लेकर निकलते हैं जिसमें छठी मइया का प्रसाद व पूजन सामग्री होती है। प्रसाद व पूजन सामग्री से भरी डलिया लेकर चलने का काम घर के मुखिया या किसी बड़े लड़के का होता है। उनके पीछे-पीछे मां या पत्नी चलती हैं जो कि निर्जला व्रत में होती हैं।

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