आजकल के बच्चों के जीवनशैली को समझना इतना आसान नहीं रह गया है। यही कारण है कि बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। हाल ही में अमेरिका में हुए एक सर्वे के अनुसार, दो-तिहाई माता-पिता अपने बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों को पहचान पाने में बहुत दिग्गतों का सामना कर रहे हैं।
मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि अधिकांश माता-पिता का कहना है कि वे हाई स्कूल और बढ़ते बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों को आसानी से पहचान सकते हैं जबकि दो तिहाई ने माना कि डिप्रेशन के विशिष्ट लक्षणों को पहचानने में उन्हें अड़चने आ रही हैं।
जूनियर और हाई स्कूल में पढ़ने वाले कम से कम एक बच्चे के 819 पेरेंट्स की प्रतिक्रियाओं के आधार पर ये सर्वे किया गया। इस सर्वे के अनुसार, 40% पेरेंट्स नॉर्मल मूड और डिप्रेशन के लक्षणों के बीच अंतर करने के लिए संघर्ष करते हैं, जबकि 30% का कहना है कि उनका बच्चा अपनी भावनाओं को छिपाने में अच्छा है।
सर्वे में ये बात भी सामने आई कि स्कूली बच्चों में डिप्रेशन बहुत कॉमन टॉपिक है। चार में से एक पेरेंट ने कहा कि उनका बच्चा डिप्रेशन से गुजर रहे सहपाठी को जानता है और 10 में से एक ने कहा कि उनका बच्चा एक सहपाठी को जानता था जिसने डिप्रेशन के कारण आत्महत्या कर ली।
चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल नेशनल पोल की सह-निदेशक सारा क्लार्क का कहना है कि कई परिवारों में टीनेज और इससे पहले की ऐज में युवाओं के व्यवहार में बड़ा बदलाव होता है। साथ ही पेरेंट्स और बच्चों के रिश्तों के बीच भी बड़ा बदलाव देखने को मिलता है।
ये बदलाव बच्चों की भावनात्मक स्थिति को पढ़ने के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है जिसके चलते पेरेंट्स भ्रमित हो जाते हैं कि बच्चा डिप्रेशन में है या ये नॉर्मल मूड स्विंग है। रिसर्च के नतीजों में एक तिहाई पेरेंट्स ने कहा कि उनके बच्चे में डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानने की उनकी क्षमता में कोई बाधा नहीं आएगी।