is there any law on encounters?

विकास दुबे मामले में क्या फंस जाएगी पुलिस, एनकाउंटर पर क्या कहता है कानून

कानपुर शूटआउट (shootout) का मुख्य आरोपी विकास दूबे एनकाउंटर (encounter) में मारा गया है। इससे पहले विकास दूबे के 4 साथियों को भी पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। इतने पुलिस एनकाउंटर के बीच ये चर्चा गर्म है कि आखिर एनकाउंटर की सीमा क्या है और कब पुलिस को कार्रवाई का अधिकार होता है। क्या इस मामले में पुलिस भी सवालों के घेरे में होगी? पुलिस को गोली चलाने का अधिकार किन हालातों में है? ऐसे सवाल अब उठ रहे हैं।

एनकाउंटर और छानबीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले दिए थे। कानूनी जानकार बताते हैं कि 2014 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर से हुई मौत के मामले में छानबीन के लिए गाइडलाइंस जारी कर रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले सीनियर एडवोकेट संजय पारिख का कहना है कि रूल ऑफ लॉ में एनकाउंटर कि कोई जगह नहीं है पुलिस सिर्फ सेल्फ डिफेंस (self defence) में कार्रवाई कर सकती है।

एनकाउंटर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट से गाइडलाइंस जारी करने की गुहार लगाने वाले सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने बताया कि सेल्फ डिफेंस में अगर कोई पुलिस गोली चलाने या हथियार चलाने की कार्रवाई करता है तो उसे इस बात को साबित करना होगा कि सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई। कानून की किताब में पुलिस को एनकाउंटर का अधिकार नहीं दिया गया है। सेल्फ डिफेंस में आम नागरिक को भी जान बचाने के लिए बल प्रयोग का अधिकार है।

पारिख बताते हैं कि CrPC की धारा-46 में जब पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है और उस समय पुलिस बल पर आरोपी अगर हमला करता है तो पुलिस को जान बचाने के लिए हथियार चलाने का अधिकार है। NHRC के तत्कालीन चेयरमैन जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने इसको लेकर सिफारिश की थी कि अगर कोई एनकाउंटर होता है तो मामले में धारा-302 के तहत केस दर्ज करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर मामले में छानबीन की प्रक्रिया बताई थी और कहा था कि अगर एनकाउंटर के दौरान पुलिस गोली चलाती है या चलानी पड़ती है तो मौत होने की स्थिति में FIR दर्ज होगी और छानबीन किसी और थाने की पुलिस करेगी या फिर CID या अन्य एजेंसी जांच कर सकती है।

IPC हो या फिर CrPC कहीं भी एनकाउंटर के लिए पुलिस को अधिकार नहीं दिया गया है। संविधान में लिखा हुआ है कि कोई भी आरोपी तब तक दोषी नहीं है जब तक कि अपराध साबित न हो जाए। पुलिस का काम है कि वह मामले में आरोपी को गिरफ्तार करे और सबूत जुटाए और उस आधार पर चार्जशीट दाखिल करे। ट्रायल के बाद ही आरोपी गुनाहगार साबित हो सकता है।

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