होलिका दहन सोमवार और होली मंगलवार को मनाई जाएगी। ग्रह एवं नक्षत्रों के विशेष संयोग से इस बार की होली खास होने वाली है। ज्योतिषियों के मुताबिक, इस होली पर ध्वज नामक महाऔदायिक योग बन रहा है, जो राष्ट्र का गौरव बढ़ाने के साथ ही घर में धन आएगा। इस बार होलिका दहन का यह संयोग 499 साल बाद बन रहा है।
होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को फाल्गुनिका के नाम से जानी जाती है। इस दिन आमोद-प्रमोद के साथ बुराई की प्रतीक होलिका का दहन किया जाता है और आने वाले वर्ष की शुभता की कामना की जाती है। वैसे तो हर त्योहार का अपना एक रंग होता है, लेकिन होली हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का वो त्योहार है जो सिर्फ भारत में ही मनाई जाती है।
इस बार होली में बृहस्पति एवं शनि दोनों स्वग्रही हैं। ग्रहों के इस संयोग से पूरा साल सभी के लिए खुशहाली लेकर आने वाला है। इस बार का होलिका दहन का संयोग 499 साल बाद बन रहा है। घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है।
मेष-लाल, वृष-हल्का पीला, मिथुन- हल्का हरा, कर्क-हल्का पीला, सिंह-लाल, कन्या-हल्का हरा, तुला-गुलाबी, वृश्चिक-लाल, धनु-पीला, मकर व कुंभ राशि के लिए-नीला व हल्का पीला और मीन राशि वालों के लिए पीला रंग विशेष शुभ होगा।
स्वयं को भगवान मान बैठे हिरण्यकश्यप ने भगवान की भक्ति में लीन अपने पुत्र प्रह्लाद को बहन होलिका (जिसे न जलने का वरदान प्राप्त था) के जरिये जिंदा जला देना चाहा था, लेकिन भगवान ने भक्त पर अपनी कृपा की और प्रह्लाद के लिए बनाई चिता में स्वयं होलिका जल मरी। इसलिए इस दिन होलिका दहन की परंपरा है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है।
होलिका दहन का मुहूर्त है- शाम पांच बजकर 52 मिनट से रात्रि 11 बजकर 26 मिनट तक।