35 साल पुराना ज़हर आज भी रगों में दौड़ रहा है यहाँ, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं। साल दर साल सरकारी नुमाइंदे आते और समितियां बना कर चले जाते लेकिन यह घाव साफ़ करने वाला या उसका दर्द कम करने वाला कोई नहीं। आज भी आंखें तरस रहीं हैं और इंतज़ार में पथरा सी गयी हैं।
बीते 35 साल में भोपाल गैस त्रासदी से यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़े 340 टन जहरीले कचरे को नष्ट नहीं किया जा सका है। नतीजतन आसपास के चार किलोमीटर के दायरे में भूमिगत जल व मिट्टी प्रदूषित हो चुइकी है। भारतीय विष विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार जहरीले कचरे से आसपास की 42 बस्तियों के भूमिगत जल स्रोतों में हानिकारक रसायन का स्तर बढ़ा है। पहले ये रसायन 36 बस्तियों के भूमिगत जल स्रोतों तक ही सीमित थे।
डेढ़ साल पहले इंदौर के पीथमपुर में इस कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी। 10 टन कचरा नष्ट भी किया गया था। उसके बाद प्रक्रिया रुकी हुई है। माला केंद्र और राज्य के बींच उलझता चला आ रहा है, और इसी उलझन के कारण कचरा नष्ट नहीं हो पा रहा है।
भोपाल गैस पीडि़त संगठन के नवाब खां का कहना है कि 2015-16 में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक संस्था की तरफ से कहा गया था कि वे वैज्ञानिक अध्ययन कर कचरा हटाने में मदद करना चाहते हैं। तब केंद्र में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विदेशी मदद लेने से साफ़ इन्कार कर दिया था। नवाब खां का कहना है कि केंद्र ने न संयुक्त राष्ट्र संघ की बात मानी न खुद कचरा हटाने की ठोस पहल की।